अपनी मौत के बिस्तर पर
मैं बोलूं या ना बोलूं
इस समाज से करूंगा हमेशा
संघर्ष
GENDER PERSPECTIVE ON HOME AND THE WORLD
मैं बोलूं या ना बोलूं
इस समाज से करूंगा हमेशा
संघर्ष
गूँथा हुआ जीवन पके हुए वे छेहर बाल बिखरेथे इधर उधर गुलियाए चेहरे पर हँसकर कहा उसने, “अब मेरे हाथ में समय है बालों का जंजाल कम हो गया- छेहर से कुछ केश ही तो बचे हैं जूड़े के जाल में सिमट जाते हैं बड़े आराम से आओ मैं बाल काढ़ दूँ अब तुम्हारे” अपनी बेटी से कहा उसने उसकी सघन …
गूँथा हुआ जीवन : लक्ष्मी कनन की कविताएँ/अनुवाद – अनामिका Read More‘‘ताजी, ठंडी हवा का झोंका- यह मिलेगा हमारे बेटे को विरासत में।’’
गोपीकृष्ण गोपेश द्वारा अनूदित ओल्गा मार्कोवा की कहानी ‘ताज़ी हवा का झोंका’ Read More