अपनी मौत के बिस्तर पर
मैं बोलूं या ना बोलूं
इस समाज से करूंगा हमेशा
संघर्ष
GENDER PERSPECTIVE ON HOME AND THE WORLD
मैं बोलूं या ना बोलूं
इस समाज से करूंगा हमेशा
संघर्ष
कविता के अनुवाद का यह अनुभव मेरे लिए अनुवाद की प्रक्रिया को समझने का सृजनात्मक सोपान तो है ही, सांस्कृतिक साझेदारी का भी अनूठा संयोग है।
कविता का अनुवाद : सांस्कृतिक साझेदारी का सार्थक सोपान Read MoreBy not keeping time almost always
Have managed to keep it
“कविता के शिल्प की नहीं,
मुझसे जीवन के शिल्प की बात करो.””
‘…will a day of leniency make her a regular visitor?
to shelter her or send her away…’
कुछ मौतें हैं बनी ठनी
नफ़ासत से तह की हुई तितलियाँ
और कुछ के होते हैं परचम
In a seashell held to the ear
the murmur of a distant ocean…
बाबुषा कोहली की कविताएँ
मृत्यु – नींद का नीला फूल है Read More…दरअसल मेरे दोस्त !
ज़िन्दगी अपने आप में एक आतंकवादी हमला है
जिससे किसी तरह बच निकली कविता…
गूँथा हुआ जीवन पके हुए वे छेहर बाल बिखरेथे इधर उधर गुलियाए चेहरे पर हँसकर कहा उसने, “अब मेरे हाथ में समय है बालों का जंजाल कम हो गया- छेहर से कुछ केश ही तो बचे हैं जूड़े के जाल में सिमट जाते हैं बड़े आराम से आओ मैं बाल काढ़ दूँ अब तुम्हारे” अपनी बेटी से कहा उसने उसकी सघन …
गूँथा हुआ जीवन : लक्ष्मी कनन की कविताएँ/अनुवाद – अनामिका Read More