बीसवीं सदी में जब उग्र नारीवाद ने जन्म लिया, विशेषकर फ़्रांस में तो मातृत्व को औरत की पाँव की बेड़ी बतलाया

प्रज्ञा और गर्भाशय के बीच

:: मृदुला गर्ग कुछ समय पहले मैं एंजला कार्टेर का उपन्यास “वाइज़ चिल्ड्रन” पढ़ रही थी। शेक्सपीयर की कौमुदी तर्ज पर लिखा उपन्यास गहरी विदूषकीय दृष्टि से सम्पन्न है, जिसकी अन्तर्धारा, आप जानते हैं, बेहद त्रासद रहती है। दो बूढ़ी, जुड़वां बहनें, अपनी आत्मकथा कहती हैं। एक से एक दुखद घटना का ज़िक्र करती हैं, फिर कहती हैं, पर वह त्रासदी …

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रेणु की वैचारिक चेतना

इतना स्पंदित जीवन! इसी की गूँज, इसी की थरथराहट उनकी रचनाओं में लरज रही है। उनकी रचनाआ में जो लालित्य है – स्थानिकता का, ’लोकल’ का, वह उनके जीवन का ही है, स्वयं उनका जिया हुआ! 

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