तारसिया दो अमाराल, आन्त्रोपोफाजिया, १९२९.
गूँथा हुआ जीवन : लक्ष्मी कनन की कविताएँ/अनुवाद – अनामिका
गूँथा हुआ जीवन पके हुए वे छेहर बाल बिखरेथे इधर उधर गुलियाए चेहरे पर हँसकर कहा उसने, “अब मेरे हाथ में समय है बालों का जंजाल कम हो गया- छेहर …
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