मीरा मिश्रा कौशिक, लंदन की सांस्कृतिक मुख्यधारा से जुड़ी एक ऐसी शख़्सियत हैं -जिन्हें देखते ही आप उनके प्रभाव में आ जाते हैं |
चेहरे पर अनुभव और ज्ञान का तेज, खूबसूरत पारम्परिक भारतीय साड़ी पहने, पीछे जूड़े में बँधे बाल, काजल से भरी बड़ी -बड़ी सुन्दर आँखें और माथे पर एक बड़ी सी कत्थई बिंदी | कुल मिला कहूँ तो भारतीय स्त्री का सुन्दर प्रतीक हैं- मीरा कौशिक | कार्य भी ऐसा कर रही हैं जो वैश्विक-मंच पर भारतीय ललित कलाओं को प्रचारित कर रहा है | भारतीय संस्कृति का विदेश में पिछले 40 वर्षों से प्रचार-प्रसार, भारत के प्रति समर्पण ऐसा कि ब्रिटेन की महारानी से OBE पाने के बावजूद आज भी भारतीय पासपोर्ट पर ही ब्रिटेन में रहती हैं और अपनी भारतीय नागरिकता को तमग़े की तरह गर्व से पहनती हैं।
भारतीय नृत्य कला को विश्व पटल पर अत्यंत आकर्षक तरीके से स्थान दिलाया है मीरा जी ने | मीरा का कैरियर फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया से शुरू हुआ फिर चैनल 4 और बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में स्वतंत्र-लेखन और अनुसंधान-कर्ता के रूप में कार्य किया lजीवन के कुछ वर्ष ब्रिटेन स्थित वुमेंस मूवमेंट में बिताने के बाद वे अकादमी नामक संस्था की निर्देशिका बनीं। जीवन के लगभग तीन दशकों में एक वृहद् इतिहास को रच कर मीरा ने कमिंग ऑफ़ ऐज, एस्केपेड, वॉटरस्केप्स,बेल्स, सूफी ज़ेन, उसने कहा था- द ट्रॉथ, आवाज़ और माया जैसे भव्य अपरंपरागतप्रोडक्शंस बनाये। ‘इम्पीरियल सोसाइटी ऑफ़ टीचर्स ऑफ़ डांस’ में कत्थक और भरतनाट्यम् का वैश्विक प्रोजेक्ट आज एक वृहद् रूप ले चुका हैl भारतीय-संस्कृति, नृत्य-शैलियों और संगीत-परम्पराओं के प्रति उनका लगाव और समर्पण उनके प्रत्येक कार्य और योजना में नज़र आता है |
तो मिलिए मीरा जी से। ..
नंदिता : नमस्कार मीरा जी, आप ने अनुरोध स्वीकार किया। आभार. लंदन में आप एक बड़ा नाम हैं | भारतीयता के रंग में आप सदा रंगी नजर आती हैं, आप बदली नहीं। क्यों ?
मीरा कौशिक : भारतीय तो हूँ ही और भारत की तरह निरंतर बदलती और उत्क्रांत भी रहती हूँ। हमेशा से मैंने भारतीय हथकरघा और खादी के कपड़े पहने हैं और आज ये मेरी पहचान बन गए हैं। अच्छा लगता है | मेरा आधुनिकरण मेरे वस्त्रों कीबजाय मेरे समसामयिक कला-कर्म से जुड़ा है, फिर भी मेरे दर्ज़ी की सिलाई अब मेरी पहचान बन चुकी है। |कभी-कभी लगता है कि मेरे अंदर के जूनून और एकचित्त ने मुझको कभी इस बाहरी बदलाव के लिए उकसाया भी नहीं | मैं अपने आप को इसी हाल में अच्छी लगती हूँ।
नंदिता : आपने अपना जीवन नृत्य-जगत की सेवा में लगाया है। आजकल आप क्या कर रही हैं?
मीरा कौशिक : आज ऋषि सूनक के ब्रिटेन में भारत एक नयी पहचान के साथ उदीयमान है।उसी कैनवास पर मैं फ्रीलान्स काम कर रही हूँ जिसमें स्वतंत्र रूप से मैं कई छोटे और बड़े, भिन्न विधाओं के प्रोजैक्ट्स से जुड़ी हूँ। मेरी संभावनाएँ मेरे उन बच्चों की तरह हैं- जिनसे मुझे बहुत आशाएँ हैं।
आजकल मैं दो महत्वपूर्ण फेस्टिवल डायरेक्ट कर रही हूँ- ‘अनहद’- यूके,लंदन और ‘वाव’- रामगढ़, शेखावटी-भारत मेंआयोजित हो रहा है। इनके अतिरिक्त तीन परामर्श के प्रोजेक्ट, कुछ बोर्ड्स – सौमिक दत्ता (संगीत)और टेलीविजन फॉर एनवायरनमेंट( फ़िल्म) की सदस्या, अनगिनत उदीयमान कलाकारों को मेंटरिंग द्वारा मार्ग-निर्देशन, ब्रिटिश-सरकार से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्टआदि अनेक परियोजनाएँ चलती ही रहती हैं। कोरोना काल में स्थापित मंच-प्रोजेक्ट की को- फाउंडर हूँ जिसके अन्तर्गत कॉरपोरेट क्यूरेशन और प्रोग्रामिंग में भी व्यस्त रहती हूँ । मैं दिव्या माथुर की लंदन स्थित “वातायन’ संस्था की अध्यक्षा तो हूँ ही।
मेरे ऊपर असीमित खुला आकाश है और सामने कई वैश्विक योजनाओं के खुले दरवाज़े हैं। इस समय मैं अपनी ऊर्जा को सही स्थान पर खर्च करने का प्रयास कर रही हूँ।
नंदिता : आपकी हिंदी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ है l आप भारत में मूलतः कहाँ से हैं? बचपन कहाँ गुज़रा आपका ?
मीरा कौशिक : मेरी मातृभाषा भोजपुरी और मालवी में लिपटी हिंदी ही है l मूलतः मेरे पिताजी पूर्वी उत्तर-प्रदेश और माँ मध्य-प्रदेश की थीं,तो घर में हिंदी ही बोली जाती थी | पिता भारतीय राजनयिक थे l मेरा जन्म बेलग्रेड में हुआ- जो अबसर्बिया की राजधानी है l बचपन का कुछ समय हरदा (म.प्र) में बीता, फिर हम दिल्ली में बस गए और वहीं मेरी शिक्षा हुई | हिन्दी मेरे परिवेश में बसी थी और घर पर विशिष्ट लेखकों और विचारकों का आवागमन था। सो भाषा ने मुझे हमेशा बाँध कर रखा।
नंदिता : अपने माता -पिता के बारे में कुछ बताइए l आपका घरेलू परिवेश कैसा था ?
मीरा कौशिक : मेरे पिताजी पूर्वी उत्तर-प्रदेश के एक ग़रीब ब्राह्मण परिवार के थे। ४२ के स्वतंत्रता आंदोलन में इलाहाबाद स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट थे l उस दौरान तीन वर्ष के लिए जेल गये। फिर लंदन में कृष्ण मेनन के संरक्षण में ‘लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स’ से पढ़ाई और पीएचडी की।
बाद में वे पत्रकारिता में उतर आए। उनका यायावर स्वभाव था l घर राजनीतिक गरमा- गरमी लिए दिल्ली के पत्रकारों, राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियों से भरा हुआ रहता था। मैंने पिता के जीवन से यही सीखा कि एक स्वतंत्रता सेनानी सफल राजनीतिज्ञ नहीं बन सकते।
मेरी माँ — गंभीर प्रकृति की विदुषी थीं। उन्होंने डबल एम.ए. किया थाl उन्होंने भारत सरकार के गांधी-वांगमय के असंख्य ग्रंथों का आजीवन कुशल संपादन किया। उन्हें डिप्लोमैटिक कोर के दिनों में उनके एम्बेसडर की पत्नी बेगम अलि-यावर जंग ने बड़ी नफ़ासत से कला और जीवन की बारीकियों को समझने के लिए प्रशिक्षित किया था।
हमारी माँ ही हम तीन भाई-बहनों को सहेजती और प्रेरित करती रहीं l वे हमारे जीवन की रीढ़ बनी रहीं।
नंदिता : अक्सर घर की लड़कियाँ अपनी माँ द्वारा गढ़ी जाती हैं lक्या आप की माता जी भी कलात्मक अभिरूचि वाली थीं ?
मीरा कौशिक : हाँ, मेरी माँ ने मेरे जीवन को अपने अंतिम समय तक गढ़ा। वे मेरी सभी खूबियों और कमज़ोरियों से परिचित थीं।उन्हीं की इच्छा थी कि पढ़ाई के अलावा मैं अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों से भी जुड़ी रहूँ | मैं अपने घर की पहली और शरारती संतान थीl दिल्ली में काफ़ी मेहनत कर मेरा दाख़िला लेडी इरविन विद्यालय में हो गया। | मेरी शरारतों को देखकर उन्होंने मेरी ऊर्जा को दिशा देने के लिए पेंट, ब्रश और काग़ज़ दिए l ‘चिल्ड्रेंस लिटिल थिएटर’ के नाटकों में भाग लेने के लिएमुझे प्रोत्साहित किया |
नाटकों में भाग लेने लगी तो उन्होंने मुझे शास्त्रीय संगीत की कक्षा में भी भेजना आरम्भ किया | किंतु उन दिनों हमारे परिवार में लड़कियों को पाक-विद्या और सिलाई-कढ़ाई के अलावा विवाह योग्य बनाने के लिए थोड़ा बहुत नाचना-गाना सिखाया जाता था इसलिए मेरा विद्रोही मन अक्सर भाग लिया करता था। फिर भी ललित-कलाओं में मेरी सहज रूचि थी इस लिए जहाँ भी कुछ सीखने का मौका मिलता मैं सीखती- फिर चाहे वो थिएटर हो या विज़ुअल आर्ट्स, सब सीखा।
हाँ, नृत्य का (छऊ के अलावा) मैंने कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया – जबकि नृत्य जगत की सेवा में तीन दशक बिताए।
नंदिता : मैंने सुना है कि आप बचपन में ही ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रम में भाग लेने लगी थीं ? ये सिलसिला कैसे शुरू हुआ ?
मीरा कौशिक : मैं स्कूल के दिनों से ही दिल्ली के स्थानीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया करती थी। ऑल इंडिया रेडियो मेरे घर से बहुत दूर नहीं था। उस समय बच्चो़ं के कार्यक्रम से जुड़ गयी फिर तो संयोग बनते गए | उम्र के साथ-साथ मैं भी युववाणी, उर्दू सर्विस, बहनों का कार्यक्रम से जुड़ी और आगे चल कर दूरदर्शन से भी जुड़ गयी। अपने पति नरेश कौशिक से मैं दूरदर्शन के युवमंच कार्यक्रम की एक रिकॉर्डिंग के दौरान ही मिली थी l कोई भी अच्छा कार्यक्रम होता, बुलाया जाता तो चली जाती थी | धीरे-धीरे स्वतः प्रशिक्षित होती रही |
नंदिता : आप की शिक्षा कहाँ से है ? क्या कला में पारंगत होने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण लिया था ?
मीरा : मेरी मूल शिक्षा दिल्ली के लेडी इरविन विद्यालय और लेडी श्री राम कॉलेज में हुई। फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया।
पूना फ़िल्म इंस्टिट्यूट का एक मूल कार्यक्रम समाप्त करने के बाद मैं विवाह कर लंदन आ बसी l यहाँ के जीवन में रमने बसने के लिए मुझे ‘कॉलेज ऑफ़ डिस्ट्रिब्यूटिव ट्रेड्स’- यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन के लंबे और ढेरों छोटे कोर्सेज़ करने पड़े l आज भी मैं अपने को प्रशिक्षित और अपडेट करने के लिए लगातार लगी रहती हूँ।
मेरे जीवन में कला समग्र रूप से व्यापी हुई है। मैं ब्रिटेन की समसामयिक ललित कलाओं में रुचि रखती हूँ l रॉयल अकादमी ऑफ़ आर्ट, साउथ बैंक, इंस्टिट्यूट ऑफ़ कंटेम्पररी आर्ट, नेशनल थिएटर, नेशनल फ़िल्म थिएटर, लंदन फ़िल्म फेस्टिवल, फ़्रीज़, बार्बिकन आदि की सदस्या हूँ। मेरे लिए हर विधा परस्पर जुड़ी हुई है और एक दूसरे को प्रभावित करती है। मेरी जीवन-शैली का प्रत्येक पोर इसी साधना से भीगा है।
उदाहरण के लिए चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ का मंचन मैंने प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में एक जीवित मूक चलचित्र की तरह किया था। उसमें सौ साल पुरानी मूल ब्लैक एंड वाइट फ़िल्मों के सम्मिश्रण से, सबटाइटल के साथ,वेस्टर्न कंटेम्पररी डांस का प्रोडक्शन बनाया था। इस शो को कई बड़े वैश्विक और स्थानीय पुरस्कार मिले।
नंदिता : यू.के. आना कैसे हुआ ?
मीरा कौशिक : यू.के. तो मैं २३ वर्ष की आयु में विवाह के बाद आई | मेरे मित्र नरेश कौशिक उन दिनों ‘दिनमान’ पत्रिका में कार्य करते थे | मेरी उन से पहचान दूरदर्शन में १७ वर्ष की आयु में हुई | पाँच-छह साल बाद उन्हें बीबीसी में नौकरी मिल गई और उन से मेरा विवाह मेरे परिवारजनों के प्रयासों से हुआ | मैं रेडियो-दूरदर्शन से जुड़ी हुई थी पर यहाँ लंदन में पति-पत्नी एक संस्था में काम नहीं कर सकते तो मुझे कुछ नया करना पड़ा।
वर्ष 1982 में इंदिरा गाँधी के ‘फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया’ कार्यक्रम की तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं ।मैंने पाया कि बहुत सारे जाने-पहचाने चेहरे लंदन पधार रहे हैं। तब मैंने ‘कॉमनवेल्थ इंस्टिट्यूट’ से संपर्क किया और उन्हें बताया कि मैं भी अब लंदन में हूँ और यहाँ आने वाले कलाकारों से भी परिचित हूँ l अगर आप चाहें तो सहयोग कर सकती हूँ | उन्हें भी किसी ऐसे व्यक्ति की खोज थी जो एक माध्यम बन सके और भारतीय कलाकारों के साथ समन्वय बैठा पाए l उन्होंने मुझे फेस्टिवल संयोजककी नौकरी दे दी | फिर तो मेरे लिए सारे रास्ते खुलते गए | अनेक बड़े और बेहतरीन कलाकारों से मिलने का मौका मिलाl
पंडित रविशंकर ने इस कार्यक्रम का ज़ोरदार आरम्भ किया थाlअलरमेल वल्ली, राजा-राधा रेड्डी ने प्रस्तुति कीl एयर इंडिया की शृंगार कॉमनवेल्थ इंस्टिट्यूट और राजीव सेठी जी की अदिति भी प्रथम बार बार्बिकन में आयी थी |
नंदिता : सच में बड़ा सुन्दर और रोमांचक अनुभव रहा होगा आपका मीरा जी | इस के बाद अगला पड़ाव शायद अकादमी था l
मीरा कौशिक : ‘फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया’ के बाद मैं बेटे की माँ बनी तो थोड़े दिन छुट्टी और आराम के बीते l साथ-साथ कुछ और दिन धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान और वामा आदि पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन करते हुए बीते।
उसके बाद फिर कुछ करने की इच्छा से घर से बाहर कदम निकाला और भारतीय उच्चायोग में एक छोटी सी नौकरी से शुरुआत की।उन्हीं दिनों मेरा परिचय ग्रीनिच स्थित एक वीमेन एक्टिविस्ट ग्रुप से हुआl वहाँ मुझे आर्ट्स ऑफिसर की नौकरी मुझे मिल गई। हालांकि यह काम घर से दूर था पर मेरा मन मुख्यधारा की कला और सांस्कृतिक गतिविधियों में ज्यादा लगता।
एक दिन ‘अकादमी ऑफ़ इंडियन डांस’ में निदेशक पद के लिए विज्ञापन निकला l इसकी संस्थापिका सुप्रसिद्ध मोहिनीअट्टम नृत्यांगना श्रीमती तारा राजकुमार हैं l यह संस्था प्लेस थिएटर , कैम्डन में हमारे घर के पास ही थी। जैसे मैंने आपको बताया कि मैंने किसी भी पारम्परिक या शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण नहीं लिया है।
यहाँ पर मेरा भाग्य प्रबल था l उस समय निर्णायक समिति द्वारा यह निर्णय लिया गया कि किसी नृत्यांगना को यहपद न दिया जाए l संयोग से वहाँ मुझे छोड़कर सभी आवेदक नर्तक ही थे। निर्णायक मंडल ने आउटसाइडर होने के कारण मेरा चुनाव किया।
मैं अपने कार्य और संस्था में उत्कृष्टता लाने के निश्चय की पथरीली ज़मीन पर शास्त्रीय, पारम्परिक, समसामयिक, लोक या बॉलीवुड नृत्यों से बराबरी का व्यवहार कर, भिन्न-भिन्न कलात्मक प्रयोग करने लगी।
जहाँ कहीं भी खूबसूरती और कुछ नया करने की चुनौती मिलती – मैं जुड़ जाती l मैं इसे सौभाग्य ही कहूँगी कि उसे मंच पर लाने के लिएब्रिटेन की युवा प्रतिभाएँ और बड़े कलाकार – सभी साथ देते रहे।
दर्शकों और कलाकारों दोनों को प्रस्तुतियाँ पसंद आतीं l फिर इसी उत्साह के साथ एक से बढ़ कर एक कार्यक्रम अकादमी द्वारा किए जाने लगे | इस सदी के प्रारंभ तक पहुँचते-पहुँचतेअकादमी ब्रिटेन और विश्व की एक महत्वपूर्ण और प्रख्यात भारतीय नृत्य-संस्था बन चुकी थी l
ऐसे में मुझे कई सुअवसर मिले – जिनमें महारानी की पचासवीं वर्षगाँठ पर हुई परेड के एक हिस्से का तीन सौ कलाकारों के साथ निर्देशन और बकिंघम- पैलेस में भारत के कॉमेनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग बैटन रिले सेरेमनी, साथ में भारत की आज़ादी के सत्तरवें वर्ष पर बकिंघम पैलेस में कार्यक्रम की प्रस्तुति, फ़्रेंच डिज़ाइन हाउस ‘हर्मीज़’ का शेज़िंकोट महल में निर्देशित वार्षिक आयोजन आज भी मेरे लिये अविस्मरणीय हैं। ये सारे कार्यक्रम ब्रिटेन में भारत के सॉफ्ट पॉवर को स्थापित करने में सफल हुए।
अकादमी की निर्देशिका बन कर मैंने ढेरों चुनौतियों का अपने हिसाब से सफलतापूर्वक सामना किया। मेरे हर काम के पीछे एक अच्छी टीम और विस्तार से सूक्ष्म योजना बद्ध रणनीति का होना अनिवार्य था। यही मेरी हर सफलता की कुंजी भी रही।
नंदिता : क्या आपने अकादमी में डांस का भी कोर्स आरम्भ किया ? इसके बारे में बताइए l
मीरा कौशिक : यहाँ पर आए सभी भारतीय अपनी-अपनी सांस्कृतिक धरोहर साथ लेकर आए हैं। | आनंद और उत्सव में सब अपने मूल प्रदेश के लोक- गीत और पारंपरिक नृत्य किया करते हैं l जैसे आपने देखा होगा-लंदन में बहुत से गुजराती पूर्वी अफ्रीका से अपने साथ गरबा नृत्य लाए ; फिर पंजाब से लोग भांगड़ा लाए l
साठ-सत्तर के दशक में शास्त्रीय संगीत और नृत्य के कुछ जानकार भी आए l उन्होंने अपने-अपने शहरों और घरानों से जुड़कर अपनी कक्षाएँ आरम्भ कर दीं l सालों से यही चल रहा था पर योग्यता के कोई मानक नहीं थे l अच्छे स्थानीय प्रोफेशनल कलाकार मिलना भी मुश्किल था l इस कारण सभी नृत्य-गुरुओं के साथ मिलकर एक बैठक हुई जिसमें मानक पाठ्यक्रम बनाने पर चर्चा हुई | सभी के प्रयासों से मानक पाठ्यक्रम बना और फिर ‘इम्पीरियल सोसाइटी ऑफ़ टीचिंग डांस’ को भेजा गया | यही हमारा पहला कदम था |
आज ISTD की क्लासिकल इण्डियन डांस फैकल्टी पूरे विश्व में जानी जाती है जिसमें १८ वर्ष तक के बच्चे भाग लेते हैंl l
इसके बाद इस बात पर विचार हुआ कि अगर कोई छात्र इस से आगे जाकर अपनी नृत्यकला में और प्रशिक्षित होकर व्यावसायिक नर्तक बनना चाहे तो उस के लिए क्या किया जाए | इसी सोच के फलस्वरूप ‘कंटेम्प्ररी डांस ट्रस्ट’ और ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ केंट’ के सहयोग से एक बी.ए. कोर्स शुरू किया- जो काफी सफल रहा।
नंदिता : आपके कार्यक्रमों को देखने वाले दर्शक केवल भारतीय तो नहीं होंगे ; उन्हें आपने किस प्रकार आकर्षित किया ?
मीरा कौशिक : आपका यह प्रश्न अच्छा है l अकादमी मूलतः ब्रिटिश संस्था थी l आज भी मेरा अधिकतर स्वतंत्र काम यहाँ के टैक्स देनेवालों की कृपा पर आश्रित है- इसलिए उनकाउपस्थित होना अनिवार्य था। इसी लिए मैंने अपना सभी काम सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शित करना शुरू किया। भारतीय नृत्यों पर आधारित कंटेम्परेरी संरचनाएँ -सड़कों,बाज़ारों,जंगलों,पार्कों, कंदराओं आदि से लेकर भूतल और डंजन पर मुफ्त में ही प्रस्तुत कीं।
सोमरसेट हाउस, ट्रैफ़लगार स्क्वायर , साउथ बैंक, बकिंघम पैलेस , ढेरों म्यूज़ियम्स आदि न जाने कितने सार्वजनिक स्थानों पर हमने प्रस्तुतियाँ कीं ।
हमारा एक बड़ा एजुकेशन और कम्युनिटी डिपार्टमेंट लंदन शहर के स्कूल्स, कॉलेज, कम्युनिटी सेंटर्स, शरणार्थियों, मानसिक और शारीरिक रोगियों के साथ काम करता रहा है। आज भी अकादमी की निर्देशिका सुबा सुब्रह्मण्यम और करस्टन बहुत ही सफलता के साथ उसे निभा रही हैं और यूके के समाज में भारतीय कलाओं को स्थापित कर नयी दिशा दे रही हैं।
नंदिता: यू.के. स्थित भारतीय कलाकारों के विषय में आपके क्या अनुभव हैं?
मीरा कौशिक: ब्रिटेन में नृत्य की दुनिया बैलेट और कंटेम्परेरी डांस की प्रोफेशनल दुनिया है।ठीक उसी के विपरीत हमारे यहाँ भारतीय माता-पिता बच्चों को प्रोफेशनल कलाकार बनने के लिए ज्यादा प्रोत्साहित नहीं करते | अक्सर नृत्य सीखने आने वाले छात्र बच्चे होते हैं या वो स्त्रियाँ होती हैं जो समय निकाल कर आनंद के लिए आई हैं।
अकादमी में कार्यरत कलाकार प्रोफेशनल कलाकार थे और इसी कारण से उनकी मंचीय प्रस्तुतियों का स्तर काफी ऊँचा होता था |
पर एक बात तो सत्य है कि- भारतीय ब्रिटिश कलाकार भारत के बड़े कलाकारों को ही अपना आदर्श मानते हैं और उन्हीं की प्रेरणाओं से बढ़ते हैं l
नंदिता : आप यह कहना चाह रही हैं कि बदलते ज़माने के अनुसार बदलाव की आवश्यकता है जो सभी नृत्य-शैलियों में नव-चेतना का प्रचार कर सके ?
मीरा कौशिक : देखिये, सोच तो समय के अनुसार सदा बदलती ही रहेगी पर आवश्यक यह है कि सोच सही हो और सही दिशा में हो |
उभरते हुए विश्व विजेता भारत की बात करते समय और विकसित २०४७ का सपना देखते हुए हमे ध्यान रखना होगा कि सोच और सपना कलाकार के पक्ष में हो; कला के पक्ष में हो ; उनके उत्थान के पक्ष में हो क्योंकि जो कलाकार अपना शत-प्रतिशत कला को दे रहे हैं उन्हें कभी भी ठगा हुआ महसूस नहीं होना चाहिए | आप यहाँ देखिये- ब्रिटेन की सरकार, हमारे काम में इन्वेस्ट करती है और पिछले 40 वर्षों से मिल रही लगातार इन्वेस्टमेंट से आज मेरा काम संभव हो पाया है |
अक्सर भारतीय नृत्य कलाकार जब यू.के. टूर पर आते हैं तो अपनी पारंपरिक कला में तो पारंगत होते हैं पर पर प्रस्तुति की दृष्टि से पिछड़े रहते हैं,जबकि पश्चिम के हर छोटे-मोटे देश की नेशनल डांस कम्पनीज़ हैं – इसीलिए मैं कहती हूँ कि भारत में भी एक ”नेशनल स्कूल फॉर डांस” और उससे जुड़ी रैपर्ट्री कंपनी होनी चाहिए। यह ऐसी जगह पर बनायी जाए जो शहरों की चकाचौंध से दूर, शांत स्थान पर हो ;जहाँ दो साल के कड़े प्रशिक्षण के बाद नर्तक तराशे जाकर प्रोफेशनल बनकर आए – तभी हमारी कला और संस्कृति बराबरी से विश्व का ध्यान आकर्षित कर पाएगी और विजेता बन पाएगी।
जब हमारे यहाँ नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा, फ़िल्म इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन है तो नेशनल स्कूल फॉर डांस का सपना भी साकार हो सकता है।
नंदिता : आपकी अन्य रुचियाँ क्या-क्या हैं ?
मीरा: दरअसल मैं एक चित्रकार बनना चाहती थी इसलिए आज भारतीय चित्रकारी से जुड़े कई अंतरराष्ट्रीय प्रोजैक्ट्स में रुचि रखती हूँ।इंडिया आर्ट वीक, फ़्रीज़, कई विसुअल आर्ट बिनौले में हो रहे लाइव आर्ट के प्रयोगों को जीती हूँ l
सिनेमा, साहित्य और रंगमंच मुझे सींचता है।प्रसिद्ध रंगकर्मी बादल सरकार की शिष्या होने के कारण मेरी रुचियाँ स्ट्रीट आर्ट और थिएटर से भी जुड़ी हैं जहाँ छोटे- बड़े, काले -गोरे, हर तबके के आम आदमी को उत्कृष्ट कला का अनुभव होता है।
मेरी रुचि देख्या, सीख्या और परख्या के अलावा मित्रों के साथ सत्संग करने की भी है। मेरे लिये हर सोचने और रचने वाला व्यक्ति एक तीर्थ है और मेरा घर उस के सानिध्य के लिए खुले किवाड़ से प्रतीक्षारत रहता है। घर कलाकारों, परिवारजनों और मित्रों से भरा पूरा रहे – इसी रुचि को लगातार रोपती हूँ।
बाक़ी जीवन की हर एक वैचारिक सुंदरता और कलात्मक परिष्कार को आत्मसात् कर पाऊँ – तो धन्य रहूँ।
नंदिता : अपनी आगामी योजनाओं के बारे में बताना चाहेंगी ?
मीरा: भावी प्रोजैक्ट्स भारत की ८० वें स्वतंत्रता दिवस के आयोजनों से जुड़े हैं। अपने दोनों फेस्टिवल के अलावा मंचनीय प्रोजैक्ट्स, एक पुस्तक का लेखन और वातायन संस्था के साथ हिन्दी के विकास में में योगदान देने की आशा है।
मेरी दो संतानें हैं उनके परिवार के साथ नये जीवन के इस दौर में कुछ अधिक समय भी बिताना चाहती हूँ।
नंदिता : आप को बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है lइनके विषय में बताएँगी ?
मीरा: मेरे सभी सम्मान मेरे नहीं बल्कि उन कलाकारों और टेक्निशियनस के हैं जिन्होंने अथक मेहनत कर मुझे और मेरा व्यावसायिक जीवन बनाया।
२००६ में मुझे ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर OBE मिला। इसके अलावा मेरे कई प्रोजैक्ट्स पर अनेक स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की कृपा भी रही है। अधिकतर ट्रोफ़ियाँ अकादमी के दफ़्तर में हैं।
आज मैं हूँ स्वतंत्र !अपनी ज़मीन पर सुदृढ़ – अनगिनत संबंधों और नेटवर्क्स की गरिमायुक्त ट्रॉफ़ियों के साथ।
नंदिता : आपका बहुत धन्यवाद मीरा जी। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आपके शब्द?
मीरा : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आपने मेरा यह इंटरव्यू कर मुझे सम्मान दिया है। धन्यवाद आपका।
मैं यही कहूँगी कि अधिकतर महिलाएँ भीड़ और परिवार में रह कर भी अकेली ही रहती है। हम अपनी बेटियों, सहेलियों और बहनों को जन्म से ही सशक्त कर आजीवन अपनी अस्मिता का उत्सव मनाने योग्य बनायें तो हर दिन की तिथि ८ मार्च रहेगी।
यह साक्षात्कार भारत भवन लन्दन द्वारा पूर्व प्रकाशित है