गूँथा हुआ जीवन : लक्ष्मी कनन की कविताएँ/अनुवाद – अनामिका

तारसिया दो अमाराल, आन्त्रोपोफाजिया, १९२९.

गूँथा हुआ जीवन

पके हुए वे छेहर बाल बिखरे
थे इधर उधर

गुलियाए चेहरे पर

हँसकर कहा उसने, “अब मेरे हाथ में समय है

बालों का जंजाल कम हो गया- छेहर से कुछ केश ही तो बचे हैं

जूड़े के जाल में सिमट जाते हैं

बड़े आराम से

आओ मैं बाल काढ़ दूँ अब तुम्हारे”

अपनी बेटी से कहा उसने

उसकी सघन केशराशि संभालते हुए

काले कुच कुच केशों में

इधर उधर झाँकते हुए तार चांदी के

उसको अशांत कर गए;

झाड़ा उसे, “रख रखाव ठीक से नहीं करती केशों का”

झाड़ कर सोचने लगी, बेटी की उम्र भी निकल ही गई”

उसके सफेद काले बालों से छुपाती  हुई

उसने कहा कि, “सुसुम नारियल तेल से जड़ों की  मालिश

करनी ही होगी तुझे- और उसके बाद रीठे की फलियों से धोना तू
बाल

बाजारू शैंपूओँ  के
चक्कर से निकल”

मुसकाकर माँ को आश्वस्त किया चट  से

फिर अपनी बेटी से बोली, 
“ चल तू भी आ  ही जा

आ, दौड़ कर आ जा”

बच्ची के बाल बज़िद लहरों में

कंघी में अटके तो अटके रहे देर तक,

बाबा रे, इतनी भी क्या कालिमा

कि आँखों को चोट लगे

“क्या तुझसे एक मिनट की बैठकी भी नहीं सधती”

डांट सुन गई बेटी

तीन बराबर गुच्छों में उसकी माँ ने

उसके तमाम बाल बांटे

और लगी गूँथने चोटी

बाईं पाटी  दाईं पर,

दाईं बाईं पर

चलता गया सिलसिला

बेटी माँ दोनों की

गूँथती रही चोटियां साथ साथ

नानी ने बेटी के बालों में

चांदी के तार कौशल से छुपा लिए

दाँया मध्यम बाँया

तीन फाँकों में बंटा

समय ही तो गूँथता रहा

बाल के बहाने


मैत्री

 

तुमने ही मुझको मुझसे मिलवाया

क्योंकि तुम मुझको सहज छोड़ देती थी

और हंस देती थी संग संग मेरे,

बेसाख्ता

ऐसी विपुलता में खिली हुई

अपने घर मुझको तुम कभी नहीं दिखी

वहाँ तुम्हें हरदम किसी के लिए

कुछ करना ही होता था

हरदम निभानी ही रहती थी कोई भूमिका-

पत्नी- माँ दादी बहू भाभी सासू माँ चाची

अनंत होता है परिवार का घेरा

अच्छा है कि मैं कहीं बीच में अटक गई

दोस्त और दिलफरेब दुश्मन के बीच में कहीं

मैं थी -बहनापे का बंधन

मस्त कॉमरेडगिरी में

बदलता हुआ

और अधिक उन्मुक्त करता गया था हमें,

और अधिक ईमानदार

और तभी हम हमराज़ हुए-

एक खामोश किन्तु झीना भरोसा

बीच में हमारे

जिसको हम कभी तोड़ भी सकते थे,

कभी -कभी तोड़ने कि हद तक चले भी गए,

पर मजे की बात यह है कि तोड़ नहीं पाए

मैं बन गई एक जादुई आईना

जिसमें तुम जीती रही

अपने बचपन की कविता,

यौवन की खुदबुद

इसी तरह तुम भी आईना हुई मेरा

जो मेरे ढके हुए चेहरों में

मेरा हर कच्चा आक्रोश

कर गया उजागर

हमारी कलाइयों में बंधा धागा

थोड़ा तो बदरंग हो ही गया है

और सिरे भी घिस चुके हैं अब उसके

पर वह अब भी है जहां का तहां

पतझड़ का पीलापन सोखता हुआ

 


तुम्हारे और मेरे भगवान (क्रिस्टीन गोमेज़ के लिए)

 

अब जबकि पूरा देश

भगवानों के नाम पर लड़ता है

अलग अलग राजनीतिक मंचों से

संसद में, मीडिया पर 

आग लगाता बसों में,

दुकानों के शीशे तोड़ता हुआ,

सब संभव उपद्रवों में शामिल –

मैं और तुम इतने बरस साथ साथ चले

एक दूसरे को निवेदित अपनी प्रार्थनाओं में –

हालांकि अलग अलग नाम है हमारे भगवानों के

और कपड़े भी वे अलग अलग ढंग के पहनते हैं 

मेरे वाले यानि विष्णु भगवान

हरदम चकाचक -टचटाच

कपड़ों में सोने की जड़ी वादी से विलसित

आभूषण भूषित

वह पूरा धड़ उनका

सृष्टि का वैभव समेटे खड़ा है

गलहारों से

चंदन कपूर से

आँखों की वह जादुई कीमिया !

पूरी ही मैं डूब सकती हूँ

गहराई का अद्भुत आश्वासन देती वह आँखें!

उनको ही मैं पुकारती हूँ

जब भी तुम होती हो पीड़ा में

ए दोस्त मेरी

मांगती हूँ उनसे ही तुम्हारी सुरक्षा

तुम्हारी

तुम्हारे अपनों की भी

क्योंकि यही एक भगवान है

जानती हूँ जिन्हें में

तुम्हारे वाले भगवान के

लहरिल चोंगे

थोड़े अलग दिखते हैं

उनकी आकृति पर, उनके चेहरे पर

अपने प्रिय मेमनों के चरवाहे वे

दिखते हैं उनमें राजा से

झीने कपड़े भी उन्होंने छिन जाने दिए

जब उनकी देह सूली पर टँगी

झीने उन कपड़ों से झाँकता हुआ खून

मरहम था

ललछौंह मरहम

दुनिया के सारे घावों के लिए

बाल सुलभ भोलापन लिए हुआ

उनका वह प्रेम दीप्त चेहरा!

रक्त बह जाने दिया अपना

कि हम सब जीते रहें

हमारे लिए उन्होंने अपनी मृत्यु स्वीकारी

उनसे तुम करती हो प्रार्थना

जब मैं दुखी होती हूँ

और उनसे मांगती हो सुरक्षा तुम

मेरे अपनों के लिए

इस जीवन से गुजरे हैं दोनों,

तुम और मैं

प्रार्थना उचारते हुए एक दूसरे के लिए

अलग अलग भाषाओं में

आश्वस्त इस तथ्य पर कि

मायनेखेज है केवल विस्तार इन प्रार्थनाओं का


अरुण के लिए

 

पानी की एक बूंद

एक कमल पात पर

वैराग्य का प्रतीक

माना जाता है

लेकिन देखो तो जरा

इस बूंद भर मोती के भीतर

पत्ती  की धमनियाँ
उजागर हैं –

आवर्धक दर्पण में जैसे हो प्रतिबिंबित

 

और यह भी देखो

कि  एक नन्ही सी
बूंद

पत्ती के संसर्ग में

चमकीला पन्ना हुई कैसे

 

पानी सुर पत्ती

जड़े हुए नग जैसे

अपने विलगाव में भी

एक साथ

 


 

तमिल साहित्य में ‘कावेरी’ के नाम से विख्यात। तमिल एवं अंग्रेज़ी में समान रूप से लेखन। अबतक कविता, कहानी और उपन्यास की कुल सत्रह पुस्तकें प्रकाशित। कई रचनाएँ देश-विदेश की अनेक भाषाओं में अनूदित।
अंग्रेज़ी तथा अमेरिकी साहित्य में स्नातकोत्तर तथा डॉक्टरेट। हिन्दुस्तान के कई विश्वविद्यालयों में अध्यापन। हिन्दुस्तान थाम्पसन एसोसिएट्स से वरिष्ठ लेखक तथा भाषा समन्वयक के रूप में सम्बद्ध इंटरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम आयोवा (संयुक्त राज्य अमेरिका) में भागीदारी।