‘The Man in the House’ – Basudhara Roy’s Poems
“His houses have all been left behind.
He is forever lost in the chicanery of time
that shows him houses and selves in dreams.”
GENDER PERSPECTIVE ON HOME AND THE WORLD
“His houses have all been left behind.
He is forever lost in the chicanery of time
that shows him houses and selves in dreams.”
…हर समय, आरम्भ से
अपने स्वयं के कोमल, सुकुमार, सुंदर, भव्य जीव के साथ।
“One yellow evening
A just stuck leaf of autumn”
रात को घर जाने से डरता हूँमेरी असफलताएं घेर लेती हैं मुझेमेरे घर पेऔर पूछती हैं वो सवालजिनके मेरे पास जवाब नहीं होते असफलताएं मेरे जीवन मेंसबसे सफल रही हैं रात को घर जाने से डरता हूँमेरा बिस्तर मझे जकड लेता हैऔर मेरी नसों में मौजूदनींदों में सूईयाँ चुभा देता है मेरे कमरे में किताबेंअपने पन्ने फडफडा के कहती हैंहम तुझे …
रात को घर जाने से डरता हूँ – मानस भारद्वाज की कविताएँ Read More(चित्र- सुप्रिया अम्बर) विशाखा मुलमुले की कविताएँ ‘वरण-भात’ सी हैं, जीवन की साधारण लेकिन बेहद ज़रूरी चीज़ों की ओर आहिस्ते से संकेत करती हुईं, हमारे आसपास घटित हो रही रोज़ की ज़िंदगी को नयी दृष्टि से देखतीं, महसूस करती हुईं जो अक्सर इतनी आम होती हैं कि आँखों के आगे होकर भी छूट जाती हैं। यहाँ एक -एक निवाले …
यम से छीन लाएगी माँ मेरी आत्मा- विशाखा मुलमुले की कविताएँ Read Moreजोशना बैनर्जी की कविताएँ बांग्ला परिवेश, भाषा और जीवन शैली की कम जानी- समझी गयी दुनिया से हिन्दी जगत का परिचय कराती हैं
एक बंगालन के गोदने में कैद है महाब्रह्माण्ड : जोशना बैनर्जी आडवाणी की कविताएँ Read Moreवरिष्ठ कवि, लेखिका सुमन केशरी की कविताएँ मिथक, इतिहास द्वारा उपेक्षित छूट गयी स्त्री-अस्मिता और उसके अनुत्तरित प्रश्नों का आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पुनर्पाठ करती हैं
मैं रहूँगी तो यहीं इसी धरती पर- सुमन केशरी की कविताएँ Read Moreकविताएँ: रश्मि भारद्वाज छूट गयी स्त्रियाँ वे छूट गयी स्त्रियाँ हैं जिनकी देह से पोंछा जा रहा है योद्धाओं का पसीना एक सभ्यता के ख़ात्मे के बाद उनकी रक्तरंजित कोख से मनवांछित नस्ल उगाई जाएगी वे छूट गयी स्त्रियाँ अपने स्वप्न में नदी, समुद्र, पहाड़ लांघती बेतहाशा भागी जा रही हैं उनके गोद मे भूख से बिलबिला रहे शिशु हैं दूध …
रश्मि भारद्वाज की नयी कविताएँ Read Moreलंबी कविता — वीरू सोनकर इतिहास एक कब्रगाह है जहाँ आर्यावर्त अपनी बेईमान चिंताओं के साथ ऊंघ रहा है मैं सबसे पहले जागना चाहता हूँ और देखना चाहता हूँ कि संविधान का सबसे पहला पृष्ठ क्या अभी भी पढ़ा जा सकता है या उसके अक्षरों को पूंजीवाद के बदबूदार रुमाल से इतनी ज्यादा बार घिसा जा चुका है कि वह एक …
आर्यावर्त सुनो, गुम हुई है एक सभ्यता – वीरू सोनकर की लंबी कविता Read Moreसुल्तान अहमद और शतरंज की बिसात जिन्हें पिताजी ने घर पर खाने पर बुलाया जिनके साथ दरियागंज के पार्क में उन्होंने लगातार 3 दिन तक -रातें भी शामिल- शतरंज खेली थी उसमें कौन जीता कौन हारा नहीं मालूम किन्तु यह याद है कि दीदी ने रो रो कर घर सिर पर उठा लिया था जबकि माँ ने अपनी चिंता की …
Mothering Poetry : Leena Mahlotra Rao and Antara Rao Read More