प्रवीण चन्द्र शर्मा की पाँच कविताएं

      मेरी भूमिका पूर्व निर्धारित है मेरी भूमिका लिख कर रखे हुए हैं मेरे संवाद मुझे केवल इन्हें याद रखना है और इस तरह अदा करना है कि सुनने …

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भूरी झाड़ियां/ पच्चीस छोटी कविताएं – रंजना अरगडे

  सूखी झाड़ियों पर फुर्ररऱ से उड़तीं भूरी चिड़ियाँ गोया सूखी झाड़ियाँ ही हों भूरी चिड़ियाँ  2 क्या रस पाती होंगी भूरी झाड़ियों पर नीली चमकती फूलचुहिया? या ढूँढतीं हैं …

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गहन है ये अंध-कारा – निशा नाग की समीक्षा उपन्यास कालचिती पर/लेखक शेखर मल्लिक

निराला की ये पंक्तियों उपन्यास ‘कालचिती’ की इस इबारत” अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा…हम लोगों का सब खत्म हो रहा है जैसा” का ही पर्याय है जिसे नक्सल प्रभावी …

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कविता का अनुवाद : सांस्कृतिक साझेदारी का सार्थक सोपान – रेखा सेठी

 कविता को अपने जीवन में बहुत करीब महसूस करते हुए भी मैंने कभी कवितायें नहीं लिखीं। संभवतः ये अनुवाद उस खाली कोने को भरने की कोशिश भर हैं। अपने इस …

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अपनी मौत के बिस्तर पर : चीनी मजदूर कवि सू लिज्ही की कविताएँ/ अनुवाद — सविता पाठक

  30 सितम्बर 2014 को चीन के मशहूर शेनजेन औद्योगिक क्षेत्र में स्थित फॉक्सकोन कंपनी के मज़दूर सू लिज्ही ने काम की नारकीय स्थितियों से तंग आ कर आत्महत्या कर …

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