माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ८

  षोडशी की षोडशोपचार उपासना ३ ब्राह्मणी श्रीमदभागवत की मोटी पोथी खोले ग्यारहवेँ अध्याय का परायण करती बैठे बैठे ठाकुर की प्रतीक्षा कर रही थी। ब्रह्ममुहूर्त हो चला था किन्तु उसके निताई अभी तक जागे नहीं थे। इतने में किवाड़ खुला और शारदा ठाकुर के शयनकक्ष से निकलती उसे दिखाई दी।  शारदा के केशों से जल चू रहा था। वह जल …

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‘अनुमति पत्र’ उपन्यास का एक अंश – वैभव सिंह

                                     (तस्वीर- भरत तिवारी)  सामने वाली मेज के दूसरी तरफ बैठा अफसर एक ठंडे दिल-दिमाग का इंसान था जो जिंदगी से शायद उकता गया था। यहां तक कि वह यह भूल गया था कि वह जिंदगी से उकताया हुआ है। उसका शरीर किसी मशीन …

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सेरिंग वांग्मो धोम्पा- अनुराधा सिंह

 सेरिंग वांग्मो धोम्पा सेरिंग वंग्मो धोम्पा के माता पिता को सन् १९५९ में तिब्बत से पलायन करना पड़ा. उनका पालन पोषण धर्मशाला (भारत) व काठमांडू (नेपाल) के तिब्बती समुदायों के मध्य रहते हुए उनकी माता द्वारा किया गया. धोम्पा ने नई दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से बीए और एमए की उपाधियाँ अर्जित कीं, तत्पश्चात एमहर्स्ट के मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय से …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ७

 शारदा भाग दो  षोडशी की षोडशोपचार उपासना १ “पंचभूतों को बाँधकर बनाई पुतली में अतींद्रिय अनुराग का जन्म कैसे होता है? शरीर के भीतर मन नहीं है। मन के भीतर यह संसार और उस संसार में शरीर है इसलिए तो पंचभूतों की यह पोटली के बिखरने के पश्चात् भी अतींद्रिय अनुराग वैसा ही गाढ़ा और मीठा मन के चूल्हे पर खदकता …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ६

  माँमुनि भाग त्रयोदश देवी होने की विधि किसी शास्त्र में नहीं लिखी और यदि लिखी भी होती तो अक्षरज्ञान में निर्बल शारदा उस पोथी को पढ़ नहीं पाती। ब्रह्मा ने जैसे भगवती रति को जन्म दिया, उर्वशी, मेनका, रम्भा, तिलोत्तमा जैसी अप्सराएँ, पद्मिनियाँ और चित्रिणी स्त्रियाँ बनाई वैसे ही धान, जौ, जल और खेत की मिट्टी से माँ अन्नपूर्णा की …

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यम से छीन लाएगी माँ मेरी आत्मा- विशाखा मुलमुले की कविताएँ

(चित्र- सुप्रिया अम्बर)     विशाखा मुलमुले की कविताएँ ‘वरण-भात’ सी हैं, जीवन की साधारण लेकिन बेहद ज़रूरी चीज़ों की ओर आहिस्ते से संकेत करती हुईं, हमारे आसपास घटित हो रही रोज़ की ज़िंदगी को नयी दृष्टि से देखतीं, महसूस करती हुईं जो अक्सर इतनी आम होती हैं कि आँखों के आगे होकर भी छूट जाती हैं। यहाँ एक -एक निवाले …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ५

  माँमुनि भाग एकादश  रात्रिभर शारदा सोई नहीं। ठाकुर को टेरने जाती किंतु आधे मार्ग से लौट आती। गुरुजनों की लज्जा से अन्तत: हारकर किवाड़ लगाकर रात्रिभर बैठी रही किन्तु मन क्या हमारे कहे मार्ग पर चलता है! उठती और किवाड़ खोल कर देखती। ध्यान लगाकर ठाकुर का स्वर सुनने का यत्न करती। पिताजी बिष्णुपुर गए थे और माँ श्यामसुन्दरीदेवी छोटे …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ४

  खंजनाक्षी अपराह्न होते ही घर आ जाती थी। उस काल और भूगोल में विधवाओं से सौभाग्यवती अधिक बोलचाल नहीं रखती थी। खंजनाक्षी बालविधवा थी किन्तु श्यामसुन्दरीदेवी की परम सखी थी। कैशोर में किसी रोग के कारण उसके नेत्र नष्ट हो चुके थे।वह बंधोपाध्यायों की दूर की सम्बन्धी थी। घर घर जाकर गंगाफल, परोरी, तरोई, कुनरी की लताएं लगा जाती, उनकी …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ३

    चन्द्रामणिदेवी भीत दृष्टि से भीति पर खड़िया से बनी आकृतियाँ देखती रही। गौरी-गणेश मनाती रही कि भोर तक नववधू के काका का मन पलट जाए और वह बहू को यहीं छोड़ जाए। पौ फटते ही नववधू के काका नहाधोकर जाने की तैयारी में घरभर में कोलाहल करने लगे। नववधू को अपना बक्स तैयार करने का आदेश दे दिया। “किन्तु …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- २- अम्बर पाण्डेय

  अर्धरात्रि को भोजन करके घरभर गहरी निद्रा में सो रहा था। गृहस्थी की गिलहरियाँ, मूषक, नाग, बिलोटे, छाजन पर रहनेवाले काक, शुक, कपोत, पीपिलिकाएँ सभी विश्राम कर रहे थे। विषाद में नींद नहीं आती किन्तु चन्द्रामणिदेवी का मन अकल्मष था। चटाई पर पड़ते ही कुछ समय में वह सो जाती थी।  केवल गदाधर जाग रहा था। प्रतिदिन वह तीन बजे …

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