माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ३

    चन्द्रामणिदेवी भीत दृष्टि से भीति पर खड़िया से बनी आकृतियाँ देखती रही। गौरी-गणेश मनाती रही कि भोर तक नववधू के काका का मन पलट जाए और वह बहू को यहीं छोड़ जाए। पौ फटते ही नववधू के काका नहाधोकर जाने की तैयारी में घरभर में कोलाहल करने लगे। नववधू को अपना बक्स तैयार करने का आदेश दे दिया। “किन्तु …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- २- अम्बर पाण्डेय

  अर्धरात्रि को भोजन करके घरभर गहरी निद्रा में सो रहा था। गृहस्थी की गिलहरियाँ, मूषक, नाग, बिलोटे, छाजन पर रहनेवाले काक, शुक, कपोत, पीपिलिकाएँ सभी विश्राम कर रहे थे। विषाद में नींद नहीं आती किन्तु चन्द्रामणिदेवी का मन अकल्मष था। चटाई पर पड़ते ही कुछ समय में वह सो जाती थी।  केवल गदाधर जाग रहा था। प्रतिदिन वह तीन बजे …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / पहली किश्त

 सुपरिचित युवा रचनाकार अंबर पाण्डेय  द्वारा लिखित श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास माँमुनि का पश्यंती द्विभाषीय पत्रिका में धारावाहिक रूप से प्रकाशन किया जाएगा। प्रस्तुत है इस उपन्यास की पहली किश्त। (मेरी नानी का  मेरी किताब छपने से पूर्व ही देहान्त हो गया। वह पढ़ने की बहुत शौक़ीन थी। श्रीमाँ शारदा पर यह उपन्यास मैं उन्हीं के लिए लिख …

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आइनार गाछ केनो होए ना (आईने के पेड़ क्यों नहीं होते) — रामेश्वर द्विवेदी

कार्यालय में आवेदन पहुँचाने के लिए ट्राम का किराया देकर पिता बाहर निकल गए। दो दिन बाद लौटकर सागर से पूछा तो सागर अवाक। पिता के निकलते ही उसने बैग फेंके और भाग निकला। सपना घोष से मिलने को तो समंदर तैर जाता, हुगली पार करने को न सही मिट्टी का भी कच्चा घड़ा तो न सही, कहाँ कोई फिकर थी। …

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In Focus Lakshmi Kannan: कांच के मोतियों का पर्दा (लक्ष्मी कन्नन के प्रसिद्ध उपन्यास का एक अंश ) — अनामिका

“’एसे ऑफ एलिया’ पर जो होमवर्क दिया था, कर लिया पूरा?” सूजन ओ लेेरे ने कहा। “पूरा किया न!” “चार्ल्स लैम अच्छे लगते हैं?” “बहुत!” “पर क्यों भला?” “इसलिए कि वे सपनीले हैं!” “आज तो तुम फटापट जवाब दे रही हो! लेरे हंस पड़ी। अच्छा चलो, शेक्सपियर का सरल पाठ पढें!” कल्याणी  की पीठ पर रूलर कसमसा तो रही थी, पर …

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पॉलूशन मॉनिटरिंग — पूनम सिंह

 मैं बड़ी उहापोह की स्थिति में हूँ । तुम्हारा पत्र सामने खुला पड़ा है और मेरी सोच को लकवा मार गया है। ओह ! अमृता ! यह तुमने कितनी जटिल और दारुण स्थिति में डाल दिया है मुझे। तुम्हारे लिए जिन्दगी हमेशा दॉव पर लगाने की चीज रही है। जीत हार को चित्त पट की तरह मुट्ठियों में भुनाती रही हो …

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पाखी — अमिता मिश्र

    यह मेरा घर है  जिसमें मैं रहती हूं तीसरे माले पर है पिछले साल ही बड़ी मुश्किल से इस फ्लैट को खरीदा है पापा अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे सो उन्होंने मदद कर दी।नहीं तो मेरे बस का कहाँ था ये फ्लैट -स्लैट खरीदना।फ्लैट काफी दिनों से बंद था । किन्ही वृद्ध साइंटिस्ट साहब का था ।जिनका इकलौता …

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LISTEN, O FATHER! — Jaya Jadwani

   Most revered father,           Today, I wish to devote my ‘little’ humble and heartfelt subservience to you. I would not have ever been what I am today, if you had not been what you were then.           Let me come to the main point, as you strictly dislike dilly-dallying the dignity of time. Just a few months ago, I happened …

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The Chasm — Shashi Khuranna

  “So, what’s new?” He asked casually. “New? Oh….everything…..everyone…like….there….”, he replied equally casually jostling his way from the platform. Nupur was inching her way into the coach of her home-bound train and looking around for a place. One vacant seat reserved for senior citizens….no, not for me. She stood on the side, content that she was inside because the platform kept …

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