'प्रकृति', 2008, अपर्णा कौर

‘जिंदगी एक हारी हुई लड़ाई तो कतई नहीं’ – चित्रकार अर्पणा कौर की कला यात्रा

अर्पणा कौर कहती हैं, ”सच्ची कला में आपका मन जानी-पहचानी जगह को भी अप्रत्याशित ढंग से देखने का सुख बटोरता है। जानी-पहचानी जगह के बीच यह जो ‘अनजाने’ का अहाता है, वह मेरी कला का प्रांगण है।”

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रेणु की वैचारिक चेतना

इतना स्पंदित जीवन! इसी की गूँज, इसी की थरथराहट उनकी रचनाओं में लरज रही है। उनकी रचनाआ में जो लालित्य है – स्थानिकता का, ’लोकल’ का, वह उनके जीवन का ही है, स्वयं उनका जिया हुआ! 

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अनिस्का, १९२६, ऑइल ऑन कैनवास, डेविड पेत्रोविच श्टेरेनबर्ग

In Focus Lakshmi Kannan: कांच के मोतियों का पर्दा (लक्ष्मी कन्नन के प्रसिद्ध उपन्यास का एक अंश ) — अनामिका

“’एसे ऑफ एलिया’ पर जो होमवर्क दिया था, कर लिया पूरा?” सूजन ओ लेेरे ने कहा। “पूरा किया न!” “चार्ल्स लैम अच्छे लगते हैं?” “बहुत!” “पर क्यों भला?” “इसलिए कि वे सपनीले हैं!” “आज तो तुम फटापट जवाब दे रही हो! लेरे हंस पड़ी। अच्छा चलो, शेक्सपियर का सरल पाठ पढें!” कल्याणी  की पीठ पर रूलर कसमसा तो रही थी, पर …

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मैला आँचल : लिंग-भेदी नैतिकता की सर्जनात्मक आलोचना – विनोद तिवारी

28 नवंबर 2013 को मनीष शांडिल्य की एक स्टोरी के साथ बीबीसी हिंदी डॉट कॉम एक
खबर प्रकाशित होती है –  रेणु के ‘मैला
आँचल’ की कमली नहीं रहीं ।

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