On the Margins of the Stylized Word: Meanings and their Aural Surplus

In a specific sense I see myself existing in separation from the word or Śabda as the source of (all?) light. In a singular sense, however, I see myself moulding my being in its materiality which is definitely visceral and even somewhat dark. Do I then see this darkness also as the locus of my volition or is it still some pre-subjective clearing before one reaches the valley or the pass where one beholds what appear as two landscapes in an imagined separation

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बीसवीं सदी में जब उग्र नारीवाद ने जन्म लिया, विशेषकर फ़्रांस में तो मातृत्व को औरत की पाँव की बेड़ी बतलाया

प्रज्ञा और गर्भाशय के बीच

:: मृदुला गर्ग कुछ समय पहले मैं एंजला कार्टेर का उपन्यास “वाइज़ चिल्ड्रन” पढ़ रही थी। शेक्सपीयर की कौमुदी तर्ज पर लिखा उपन्यास गहरी विदूषकीय दृष्टि से सम्पन्न है, जिसकी अन्तर्धारा, आप जानते हैं, बेहद त्रासद रहती है। दो बूढ़ी, जुड़वां बहनें, अपनी आत्मकथा कहती हैं। एक से एक दुखद घटना का ज़िक्र करती हैं, फिर कहती हैं, पर वह त्रासदी …

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'प्रकृति', 2008, अपर्णा कौर

‘जिंदगी एक हारी हुई लड़ाई तो कतई नहीं’ – चित्रकार अर्पणा कौर की कला यात्रा

अर्पणा कौर कहती हैं, ”सच्ची कला में आपका मन जानी-पहचानी जगह को भी अप्रत्याशित ढंग से देखने का सुख बटोरता है। जानी-पहचानी जगह के बीच यह जो ‘अनजाने’ का अहाता है, वह मेरी कला का प्रांगण है।”

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रेणु की वैचारिक चेतना

इतना स्पंदित जीवन! इसी की गूँज, इसी की थरथराहट उनकी रचनाओं में लरज रही है। उनकी रचनाआ में जो लालित्य है – स्थानिकता का, ’लोकल’ का, वह उनके जीवन का ही है, स्वयं उनका जिया हुआ! 

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अनिस्का, १९२६, ऑइल ऑन कैनवास, डेविड पेत्रोविच श्टेरेनबर्ग

In Focus Lakshmi Kannan: कांच के मोतियों का पर्दा (लक्ष्मी कन्नन के प्रसिद्ध उपन्यास का एक अंश ) — अनामिका

“’एसे ऑफ एलिया’ पर जो होमवर्क दिया था, कर लिया पूरा?” सूजन ओ लेेरे ने कहा। “पूरा किया न!” “चार्ल्स लैम अच्छे लगते हैं?” “बहुत!” “पर क्यों भला?” “इसलिए कि वे सपनीले हैं!” “आज तो तुम फटापट जवाब दे रही हो! लेरे हंस पड़ी। अच्छा चलो, शेक्सपियर का सरल पाठ पढें!” कल्याणी  की पीठ पर रूलर कसमसा तो रही थी, पर …

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