अंजुम शर्मा की कविताएं
स्वप्न में अनवरत बचपन से एक स्वप्न सालता है मुझे मैं दौड़ता रहता हूँ सपने में अनवरत कभी लगाता हूँ इतनी लंबी छलांग कि पार हो जाती हैं एकसाथ चार गलियाँ न मालूम कहां और किस से भागता हूँ मैं मैंने हर संघर्ष का सामना शिवालिक की तरह किया है लेकिन यह एक स्वप्न बना देना चाहता है मुझे …
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