तारसिया दो अमाराल, आन्त्रोपोफाजिया, १९२९.

गूँथा हुआ जीवन : लक्ष्मी कनन की कविताएँ/अनुवाद – अनामिका

गूँथा हुआ जीवन पके हुए वे छेहर बाल बिखरेथे इधर उधर गुलियाए चेहरे पर हँसकर कहा उसने, “अब मेरे हाथ में समय है बालों का जंजाल कम हो गया- छेहर से कुछ केश ही तो बचे हैं जूड़े के जाल में सिमट जाते हैं बड़े आराम से आओ मैं बाल काढ़ दूँ अब तुम्हारे” अपनी बेटी से कहा उसने उसकी सघन …

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In Focus Lakshmi Kannan: कांच के मोतियों का पर्दा (लक्ष्मी कन्नन के प्रसिद्ध उपन्यास का एक अंश ) — अनामिका

“’एसे ऑफ एलिया’ पर जो होमवर्क दिया था, कर लिया पूरा?” सूजन ओ लेेरे ने कहा। “पूरा किया न!” “चार्ल्स लैम अच्छे लगते हैं?” “बहुत!” “पर क्यों भला?” “इसलिए कि वे सपनीले हैं!” “आज तो तुम फटापट जवाब दे रही हो! लेरे हंस पड़ी। अच्छा चलो, शेक्सपियर का सरल पाठ पढें!” कल्याणी  की पीठ पर रूलर कसमसा तो रही थी, पर …

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A Soft Knock for a Deeper Awakening : Women’s Collective

This journal is a soft knock at the door of a citadel. However jammed a door maybe, if left ajar, it arouses expectations. All the great citadels of the world – Faith, Feudalism, Patriarchy, Monarchy, Colonising power of the self-proclaimed Bosses, Marxism, and Market Materialism have had something in them that arouses hope; hope of redemption from miseries; hope also of …

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