देह और प्रेम के कुहासे के बीच सपनों का वसंत — राकेश बिहारी

  इक्कीसवीं सदी मे अपना अस्तित्व-निर्माण कर चुकी कथा लेखकों की पीढ़ी, जिसे मैं भूमंडलोत्तर कथा पीढ़ी कहता हूँ, की आधी आबादी ने नि:संदेह वर्षों पुरानी वर्जनाओं से खुद को मुक्त करते हुये स्त्री- कामेषणाओं पर खुल के कलम चलाई है. लेकिन प्रश्न यह है कि इन वर्जनाहीन कामेषणाओं को जस का तस स्वीकार कर इसके उत्सव में शामिल हो लिया …

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