अजंता देव की कविताएं
ताँत की साड़ी मैं बनी हूँ सिर्फ़ मुझे ही पहनने के लिए ब्लाउस ग़ैरज़रूरी है मेरे साथ फिसलती नहीं पर पारदर्शी हूँ मेरे किनारे मज़बूत हैं ठोक के बुना है जुलाहे ने मुझे पूरा बुनने के बाद थक गया था वह मैं नहीं निकलती हज़ारों मीटर लगातार मेरे रेशे बिखरे रहते हैं धूल के साथ धूल होते हुए । ताँत …
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