कोई रुखसत नहीं होता बिना लौटने का वादा किये- पंखुरी सिन्हा द्वारा विश्व कविता के कुछ अनुवाद

                                                          (तस्वीर- भरत तिवारी)  एक चनके हुए शीशे सा  उस पूरे दिन, जो एक लम्बा दिन था  मैं रहा दौड़ता, इधर-उधर, हर कहीं  एक चनके हुए शीशे सा  आगे से पीछे और पीछे …

कोई रुखसत नहीं होता बिना लौटने का वादा किये- पंखुरी सिन्हा द्वारा विश्व कविता के कुछ अनुवाद Read More