Mothering Poetry : Mridula Shukla and Shreyasi Shukla

 माँ ऑफिस और छुट्टी   सीखते हुए हिंदी वर्णमाला उसने लाल पेंसिल से क्रॉस के निशान बना दिए थे अ,फ और स अक्षरों पर आँखों की तरल उदासी छिपानी सीखी नहीं है उसने अब तक   छ और ट पढ़ते हुए मुस्कुराया था उन्हें बाँध दिया था गोल घेरों में ठीक वैसे ही जैसे मुट्ठी में बाँध कर रखना चाहता है …

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In Focus Lakshmi Kannan: कांच के मोतियों का पर्दा (लक्ष्मी कन्नन के प्रसिद्ध उपन्यास का एक अंश ) — अनामिका

“’एसे ऑफ एलिया’ पर जो होमवर्क दिया था, कर लिया पूरा?” सूजन ओ लेेरे ने कहा। “पूरा किया न!” “चार्ल्स लैम अच्छे लगते हैं?” “बहुत!” “पर क्यों भला?” “इसलिए कि वे सपनीले हैं!” “आज तो तुम फटापट जवाब दे रही हो! लेरे हंस पड़ी। अच्छा चलो, शेक्सपियर का सरल पाठ पढें!” कल्याणी  की पीठ पर रूलर कसमसा तो रही थी, पर …

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मध्यकालीन कृषक और कबीर — प्रो. कृष्ण कुमार सिंह

  क्रांतद्रष्टा कवि कबीर की विचारधारा का स्रोत मध्यकाल के मनुष्य के सामाजिक जीवन में निहित है। मध्यकालीन भारतीय समाज की ऐतिहासिक शक्तियों के विश्लेषण के बिना कबीर के साहित्य के अन्तःकरण का उद्घाटन नहीं किया जा सकता है। सामंती ढांचे पर आधारित मध्यकाल के भारतीय साहित्य की बुनियाद किसान थे। वे मुख्य उत्पादन-शक्ति थे। जमींदारी प्रथा भूमि-व्यवस्था का आधार थी। …

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अम्बर पांडे की कविताएं

संसार का अंतिम प्रेमी   पत्नी की चिता दाघ देने के पश्चात् वह श्मशान में ही रह गया। गया नहीं घर। संसार श्मशान उसके लिए एक ही थे दोनों। सूतक निवारण हेतु स्नान को ढिग बहती नर्मदा तक नहीं गया वह। कपालक्रिया पूर्व मुण्डन के पश्चात् शीश धोने के लिए भरा मटका रखा रहता है  उसका जल पीए चिताओं के धूम …

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पॉलूशन मॉनिटरिंग — पूनम सिंह

 मैं बड़ी उहापोह की स्थिति में हूँ । तुम्हारा पत्र सामने खुला पड़ा है और मेरी सोच को लकवा मार गया है। ओह ! अमृता ! यह तुमने कितनी जटिल और दारुण स्थिति में डाल दिया है मुझे। तुम्हारे लिए जिन्दगी हमेशा दॉव पर लगाने की चीज रही है। जीत हार को चित्त पट की तरह मुट्ठियों में भुनाती रही हो …

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पाखी — अमिता मिश्र

    यह मेरा घर है  जिसमें मैं रहती हूं तीसरे माले पर है पिछले साल ही बड़ी मुश्किल से इस फ्लैट को खरीदा है पापा अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे सो उन्होंने मदद कर दी।नहीं तो मेरे बस का कहाँ था ये फ्लैट -स्लैट खरीदना।फ्लैट काफी दिनों से बंद था । किन्ही वृद्ध साइंटिस्ट साहब का था ।जिनका इकलौता …

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सतपुड़ा के जंगलों में — सुरेश ऋतुपर्ण

कहने को तो सारा जीवन ही एक यात्रा है लेकिन इस यात्रा के प्रवाह में जो अन्य अनेक यात्राएं घटित होती रहती हैं उनकी स्मृतियां जीवन को आनंदमयी सार्थकता देती हैं। मैं घुम्मक्कड़ प्रकृति का हूं लेकिन उन अनुभवों को लिखने से कतराता रहता हूं। क्योंकि कई बार लगता है कि इन अनुभवों में क्या कुछ ऐसा विशेष है कि औरों …

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देह और प्रेम के कुहासे के बीच सपनों का वसंत — राकेश बिहारी

  इक्कीसवीं सदी मे अपना अस्तित्व-निर्माण कर चुकी कथा लेखकों की पीढ़ी, जिसे मैं भूमंडलोत्तर कथा पीढ़ी कहता हूँ, की आधी आबादी ने नि:संदेह वर्षों पुरानी वर्जनाओं से खुद को मुक्त करते हुये स्त्री- कामेषणाओं पर खुल के कलम चलाई है. लेकिन प्रश्न यह है कि इन वर्जनाहीन कामेषणाओं को जस का तस स्वीकार कर इसके उत्सव में शामिल हो लिया …

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In quest of Myself — Jaya Jadwani

  देह का गणित     बहुत सीधा है देह का गणित दो और दो कभी नहीं होते पांच कान लगाकर सुनो तो शीघ्र बता देता कहाँ लोहा कहाँ पानी कहाँ आग ज्वालामुखी कहाँ सब कुछ सीधा और साफ़ जैसे धरती न हो बारिश तो पड़ जातीं दरारें हो कई दिनों तक लगातार बह जाता सब –कुछ निशान छोड़े बिना न शामिल करो …

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मलयालम भाषा की केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार जेत्री कथाकार — डॉ के.वनजा

बीसवीं शताब्दी के आरंभ का केरलीय समाज विसंगतियों का रहा था। जाति-धर्मों पर केन्द्रित आर्थिक-व्यवस्था के बदले में पूँजीवादी विशेषताओं की व्यवस्था का आरंभ और अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मध्यवर्गीय लोगों का विकास इस ज़माने में हुए। फ्रेडरिक जेम्सन के अनुसार उपन्यास राष्ट्रीय रूपक है।  केरल में उपन्यास के आरंभ में ही अधिकार के खिलाफ एक प्रतिसंस्कृति के निर्माण का स्वभाव व्यक्त …

मलयालम भाषा की केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार जेत्री कथाकार — डॉ के.वनजा Read More