अनिस्का, १९२६, ऑइल ऑन कैनवास, डेविड पेत्रोविच श्टेरेनबर्ग

रात को घर जाने से डरता हूँ – मानस भारद्वाज की कविताएँ

रात को घर जाने से डरता हूँमेरी असफलताएं घेर लेती हैं मुझेमेरे घर पेऔर पूछती हैं वो सवालजिनके मेरे पास जवाब नहीं होते असफलताएं मेरे जीवन मेंसबसे सफल रही हैं रात को घर जाने से डरता हूँमेरा बिस्तर मझे जकड लेता हैऔर मेरी नसों में मौजूदनींदों में सूईयाँ चुभा देता है मेरे कमरे में किताबेंअपने पन्ने फडफडा के कहती हैंहम तुझे …

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इण्डिया बनाम बहिष्कृत भारत की सच्ची तस्वीर पेश करती रजत रानी ‘मीनू’ की कविताएं – ऋत्विक भारतीय

            कवि-कथाकार-आलोचक रजत रानी ‘मीनू’ की ‘पिता भी होते हैं मां’ काव्य-कृति का   प्रकाशन वर्ष- 2015 है। यह काव्य-कृति कई कारणों से उल्लेखनीय है! इस 184 पृष्ठों की लम्बी काव्य-यात्रा में दलितों की एक ऐसी दुनिया बस्ती है जहां स्त्रियां आज भी झुग्गी-झोपड़ियों/सड़कों पर रहती दोहरें-तिहरें शोषण का शिकार हैं तो दलित पुरुष आज भी स्वराज …

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A VINDICATION OF THE MONSTROUS MYSTIQUE : THE TROUBLE WITH PROCREATION, AND FEMINIST JURISPRUDENCE IN AGAMEMNON

  A VINDICATION OF THE MONSTROUS MYSTIQUE : THE TROUBLE WITH PROCREATION, AND FEMINIST JURISPRUDENCE IN AGAMEMNON   “A shudder in the loins engenders there The broken wall, the burning roof and tower And Agamemnon dead.    Being so caught up, So mastered by the brute blood of the air, Did she put on his knowledge with his power …?” –        …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ९

षोडशी की षोडशोपचार उपासना ४   जो चला जाता है उसे तो नया भुवन मिल जाता किन्तु जो पीछे रह जाता है उसके पुराने संसार में क्षण क्षण जानेवाले का अभाव खटकता है।   ऐसी ही दशा प्रसन्नमयी की हुई। शारदा और ठाकुर के जाने के पश्चात् वह चौका करती और शेष दिन माला फेरती रहती। ठाकुर के आने से जीवन …

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आउशवित्ज़ :एक प्रेमकथा -उपन्यास अंश -गरिमा श्रीवास्तव (अप्रकाशित उपन्यास )

“वह एक बड़ी भारी गझिन काली रात थी ,दिन में हरियाले मैदानों की कालिमा,  जले हुए मांस के बदबू के साथ जैसे हवा में घुल-मिल गयी थी । लगभग पाँच दिन और रात की थकान भरी यात्रा ,जो हमने  स्टेशन वैगन में की थी ,उसके बाद अब ट्रेन रुक गयी थी ,जिसके रुकने का इंतज़ार करते हुए जैसे हमें सदियाँ हो …

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माँमुनि- श्रीमाँ शारदा के जीवन पर आधारित उपन्यास / किश्त- ८

  षोडशी की षोडशोपचार उपासना ३ ब्राह्मणी श्रीमदभागवत की मोटी पोथी खोले ग्यारहवेँ अध्याय का परायण करती बैठे बैठे ठाकुर की प्रतीक्षा कर रही थी। ब्रह्ममुहूर्त हो चला था किन्तु उसके निताई अभी तक जागे नहीं थे। इतने में किवाड़ खुला और शारदा ठाकुर के शयनकक्ष से निकलती उसे दिखाई दी।  शारदा के केशों से जल चू रहा था। वह जल …

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