रेणु की वैचारिक चेतना – शिवदयाल
इतना स्पंदित जीवन! इसी की गूँज, इसी की थरथराहट उनकी रचनाओं में लरज रही है। उनकी रचनाआ में जो लालित्य है – स्थानिकता का, ’लोकल’ का, वह उनके जीवन का ही है, स्वयं उनका जिया हुआ!
रेणु की वैचारिक चेतना – शिवदयाल Read MoreGENDER PERSPECTIVE ON HOME AND THE WORLD
इतना स्पंदित जीवन! इसी की गूँज, इसी की थरथराहट उनकी रचनाओं में लरज रही है। उनकी रचनाआ में जो लालित्य है – स्थानिकता का, ’लोकल’ का, वह उनके जीवन का ही है, स्वयं उनका जिया हुआ!
रेणु की वैचारिक चेतना – शिवदयाल Read More“His houses have all been left behind.
He is forever lost in the chicanery of time
that shows him houses and selves in dreams.”
…हर समय, आरम्भ से
अपने स्वयं के कोमल, सुकुमार, सुंदर, भव्य जीव के साथ।
My body is a canvas
My body is a carcass
An open invitation
Slam: My body is a Canvas by Saisha Hayes Read More‘‘ताजी, ठंडी हवा का झोंका- यह मिलेगा हमारे बेटे को विरासत में।’’
गोपीकृष्ण गोपेश द्वारा अनूदित ओल्गा मार्कोवा की कहानी ‘ताज़ी हवा का झोंका’ Read More“One yellow evening
A just stuck leaf of autumn”
रात को घर जाने से डरता हूँमेरी असफलताएं घेर लेती हैं मुझेमेरे घर पेऔर पूछती हैं वो सवालजिनके मेरे पास जवाब नहीं होते असफलताएं मेरे जीवन मेंसबसे सफल रही हैं रात को घर जाने से डरता हूँमेरा बिस्तर मझे जकड लेता हैऔर मेरी नसों में मौजूदनींदों में सूईयाँ चुभा देता है मेरे कमरे में किताबेंअपने पन्ने फडफडा के कहती हैंहम तुझे …
रात को घर जाने से डरता हूँ – मानस भारद्वाज की कविताएँ Read More“’एसे ऑफ एलिया’ पर जो होमवर्क दिया था, कर लिया पूरा?” सूजन ओ लेेरे ने कहा।
कांच के मोतियों का पर्दा (लक्ष्मी कन्नन के प्रसिद्ध उपन्यास का एक अंश ) Read Moreकवि-कथाकार-आलोचक रजत रानी ‘मीनू’ की ‘पिता भी होते हैं मां’ काव्य-कृति का प्रकाशन वर्ष- 2015 है। यह काव्य-कृति कई कारणों से उल्लेखनीय है! इस 184 पृष्ठों की लम्बी काव्य-यात्रा में दलितों की एक ऐसी दुनिया बस्ती है जहां स्त्रियां आज भी झुग्गी-झोपड़ियों/सड़कों पर रहती दोहरें-तिहरें शोषण का शिकार हैं तो दलित पुरुष आज भी स्वराज …
इण्डिया बनाम बहिष्कृत भारत की सच्ची तस्वीर पेश करती रजत रानी ‘मीनू’ की कविताएं – ऋत्विक भारतीय Read MoreA VINDICATION OF THE MONSTROUS MYSTIQUE : THE TROUBLE WITH PROCREATION, AND FEMINIST JURISPRUDENCE IN AGAMEMNON “A shudder in the loins engenders there The broken wall, the burning roof and tower And Agamemnon dead. Being so caught up, So mastered by the brute blood of the air, Did she put on his knowledge with his power …?” – …
A VINDICATION OF THE MONSTROUS MYSTIQUE : THE TROUBLE WITH PROCREATION, AND FEMINIST JURISPRUDENCE IN AGAMEMNON Read More