भूरी झाड़ियां/ पच्चीस छोटी कविताएं – रंजना अरगडे

  सूखी झाड़ियों पर फुर्ररऱ से उड़तीं भूरी चिड़ियाँ गोया सूखी झाड़ियाँ ही हों भूरी चिड़ियाँ  2 क्या रस पाती होंगी भूरी झाड़ियों पर नीली चमकती फूलचुहिया? या ढूँढतीं हैं फूल?  3 भूरी झाड़ियों के आरपार पके खेत दानों भरे क्या कुछ सोचती होंगी भूरी झाड़ियाँ?  4 भूरी झाड़ियों से सटी हरी झाड़ियाँ बीच में है अदृश्य आईना  5 बुढ़ाती देह …

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नियति, प्रारब्ध और चित्र-कथाएं

यहाँ मैंने गोगी सरोज पाल के चित्रों में कुछ कथा-सूत्र पहचाने जिन्हें मन के शब्द देने का प्रयास किया
है.- पूनम अरोड़ा

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A Soft Knock for a Deeper Awakening : Women’s Collective

This journal is a soft knock at the door of a citadel. However jammed a door maybe, if left ajar, it arouses expectations. All the great citadels of the world – Faith, Feudalism, Patriarchy, Monarchy, Colonising power of the self-proclaimed Bosses, Marxism, and Market Materialism have had something in them that arouses hope; hope of redemption from miseries; hope also of …

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सेरेना को लेकर गढ़ा जाता नस्लवादी विमर्श – यादवेन्द्र पाण्डेय/ पुस्तक अंश

    अनेक चर्चित कविता संकलनों के रचयिता अमेरिकी कवि टोनी हॉगलैंड ने “द चेंज” शीर्षक से एक कविता लिख कर एक टेनिस मुकाबले का हवाला देते हुए बगैर सेरेना विलियम्स का नाम लिए  आसानी से समझ आने वाले तमाम शब्दों का प्रयोग किया और मुकाबला कर रही “मेरी प्रजाति की गोरी लड़की” के विजयी होने की कामना कर अपनी पक्षधरता और कालों के प्रति …

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गहन है ये अंध-कारा – निशा नाग की समीक्षा उपन्यास कालचिती पर/लेखक शेखर मल्लिक

निराला की ये पंक्तियों उपन्यास ‘कालचिती’ की इस इबारत” अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा…हम लोगों का सब खत्म हो रहा है जैसा” का ही पर्याय है जिसे नक्सल प्रभावी क्षेत्रों के जिये जाने वाले वर्तमान जीवन के कई संदर्भों में देखा जा सकता है किंतु अनंत और दीर्घकालिक समस्याओं के संदर्भ में ये पंक्तियाँ उतनी ही सटीक हैं जितना ‘कालचिती’ …

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कविता का अनुवाद : सांस्कृतिक साझेदारी का सार्थक सोपान – रेखा सेठी

 कविता को अपने जीवन में बहुत करीब महसूस करते हुए भी मैंने कभी कवितायें नहीं लिखीं। संभवतः ये अनुवाद उस खाली कोने को भरने की कोशिश भर हैं। अपने इस अकिंचन प्रयास में कितनी सफलता मिली इसका निर्णय तो पाठक ही करेंगे लेकिन अलग-अलग भाषाओं की कविताओं के अनुवाद का आनंद शब्दातीत है। किसी भी महानगर में रहते हुए आप एक …

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उषा गांगुली और उनका रंगकर्म

महाश्वेता देवी की  कहानी को उषा गांगुली ने इस तरह से निर्देशित किया है कि वह नाटक और रंगमंच की दुनिया का एक क्लासिक नाटक बन गया है.

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रंगों में खुलती एक आह : आर्टेमिज़िया

– मनीषा कुलश्रेष्ठ     2011की मई में अपनी इटली यात्रा के दौरान मुझे वेनिस, फ्लोरेंस और मिलान जैसे कला के केंद्र शहरों में नितांत अकेले भटकना एक वरदान ही था. उसी भटकाव में रेनेसां के सुनहरे चरण के कई कलाकारों कीविश्वप्रसिद् कलाकृतियों को देखने का अवसर मिला. माइकल एंजेलो की बनाई पुरुष सौंदर्य के प्रतिमान – सी ‘डेविड‘ और बेसिको …

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‘हम नहीं रोनी सूरत वाले’ : सावित्रीबाई फुले की कविताई – बजरंग बिहारी तिवारी

  जीवन की गहरी समझ के साथ काव्य-रचना में प्रवृत्त होने वाली सावित्रीबाई फुले (1831-1897) अपने दो काव्य-संग्रहों के बल पर सृजन के इतिहास में अमर हैं| उनका पहला संग्रह ‘काव्यफुले’ 1854 में तथा दूसरा ‘बावन्नकशी सुबोधरत्नाकर’ 1891 में प्रकाशित हुआ| दोनों ही संग्रह ज्योतिबा फुले से संदर्भित हैं| पहले संग्रह में उन्होंने अपने जीवनसाथी फुले के प्रति प्रेमपूर्वक कृतज्ञता जाहिर …

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मैला आँचल : लिंग-भेदी नैतिकता की सर्जनात्मक आलोचना – विनोद तिवारी

28 नवंबर 2013 को मनीष शांडिल्य की एक स्टोरी के साथ बीबीसी हिंदी डॉट कॉम एक
खबर प्रकाशित होती है –  रेणु के ‘मैला
आँचल’ की कमली नहीं रहीं ।

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