अनुवाद – रणजीत सरपाल
कुछ मौतें हैं बनी ठनी
नफ़ासत से तह की हुई तितलियाँ
और कुछ के होते हैं परचम
तार तार हुआ एक पर, थपेड़े खाता हवा में
एक एक कर पंखुड़ियाँ अदब से झुकी
कितना सही तालमेल
हमने हर एक को सराहा
अब उघाड़ा हुआ
बत्तीसी दिखाता खोल, बीजों जैसे दांत
सुखी तुरई
खड़कती रैनस्टिक होने को
मगर जब
तुम मर रहे होते हो
हो जाते हो गैर- शायरना
परिवार वाले पता लगा लेते हैं
किसको क्या मिलना है
आखिरकार तुम्हें जान लिया जाता है
दिन निकलते हैं अंडों से और तुम खिलाते हो उनके उतावले मूहों को।
साल खुलते दरवाज़ों की तरह और एक करके बंद होते तुम्हारे पीछे;
कुछ आहिस्ता, कुछ जोर से।
ठोढी की बरफ़ानी चटान पिघलती जबड़े की ढलान पर। लम्बी और खाली
स्तन-जेबें। चमड़ी सिकुड़ती पानी के अंदर।
बेलगाम तुम दो उलटी दिशाओं में छिटकते हो। तुम्हारा दिमाग
तेज़ी से दौड़ता है, एक सीटी, बिना परवाह किये; तुम्हारे बदन का
नायाब हादसा, मैं देख पा रही हूँ ये सब होते।
मंजिले गिनते हुए जैसे हम ऊपर की तरफ जाते हैं
टेड़े मेढ़े सायबान दरवाज़ों के पीछे
धुंधले होते दोस्तों के फ़ोन नंबर
हड्डियां धुली हुई शराब और सिरके में
चिन्हित की हुई घुंघराले बालों से
नींबुओं के चेहरे सड़ते घास में
पॉप स्टार ज़नाजों का पुनर्प्रसारण
डिज़ाइनर मौत की लड़ीवार पेशगी
घिन की नकली नुमाइश गैलेरियों में
बेचते ताबूत एक मंज़र के साथ
इत्तफाक से अखबार में पता लगना पड़ौसी की काबलियत का
उस लम्हे का इंतज़ार करते हुए जब मालिश करने वाला थामता है तुम्हारा हाथ
कुत्ता अब नहीं करता तुम्हारी परवाह
संगीत दिलासा देता है
ऐसा लगता है हमारे जैसे कई और भी होंगे
ज़्यादा बड़े शहरों मे लोग चलते है ज़्यादा तेज
माचिस नुमा फ्लैट उनको सरगर्म रखते हैं।
नशा छा जाता है
ताड़ के पेड़ के हवाई तंतुओं के नीचे।
झीलें सख्त और
पौधे जड़ें पकड़ते कंक्रीट में।
कहने को रुकी हुई सी ज़िंदगी मगर
चित्र से बाहर झाँकने को बेताब,
एक राख दानी आगे बढ़ती और पूछती
“माचिस है क्या ?”
मणि राव (जन्म -1965 ) एक कवि, अनुवादक और शोधकर्ता हैं। इनकी कविताओं के ग्यारह संकलन और तीन संस्कृत से अनुवादित किताबें छप चुकी हैं । वह 2005 और 2009 में आयोवा इंटरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम में विजिटिंग फेलो और 2006 यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा इंटरनेशनल प्रोग्राम की लेखिका थीं। उन्होंने चेन्नई के स्टेला मैरिस कॉलेज से अंग्रेजी में बीए किया है, नेवादा विश्वविद्यालय, लास वेगास से कविता में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स (एमएफए) किया है, और ड्यूक विश्वविद्यालय में धार्मिक अध्ययन की पीएचडी छात्रा हैं। लेखक की वेबसाइट www.manirao.com है। घोस्टमास्टर्स (२०१०) और इकोलोकेशन (२००३) कविता की उनकी चुनिंदा किताबें हैं.
इन कविताओं के अनुवादक रणजीत सरपाल पंजाब विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के सहायक प्रोफेसर के तौर पर सेवारत्त हैं। आजकल एक कविता अनुवाद प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है। इंस्टाग्राम पर @indianpoetry00 कविता पेज का संचालन करते हैं। उनसे ranjeetsarpal@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।