Mothering Poetry : Leena Mahlotra Rao and Antara Rao

सुल्तान अहमद और
शतरंज  की बिसात

 जिन्हें पिताजी ने घर पर खाने पर बुलाया

 

जिनके साथ दरियागंज के
पार्क में उन्होंने लगातार 3 दिन तक -रातें भी शामिल- शतरंज खेली थी

उसमें कौन जीता कौन हारा
नहीं मालूम

किन्तु यह याद है

कि दीदी ने रो रो कर घर
सिर पर उठा लिया था

जबकि माँ ने अपनी चिंता की
टिकिया से पहली दोपहर 8 प्राणियों के मैले कपड़े , पर्दे और चादरें धो डाली

अगली दिन उन्होंने 5 तगारी
कोयले तोड़े और रात तक सिलती रही सिलाई मशीन पर कपड़े

तीसरे दिन घर मनोयोग से
साफ किया और फिर अखण्ड सुंदर पाठ करने बैठ गई ।

 

दीदी ने दो दिन अस्पतालों
के कई चक्कर लगाए

पिताजी की नीली डायरी खोल
कर तमाम  परिचितों को फोन करके उनके
ठिकानों के बाबत पूछा

तीसरे दिन जब वह उद्यत हुई
रपट लिखाने पुलिस स्टेशन जाने को तो  माँ
ने सुंदर कांड बीच मे ही छोड़ अनुमान से बताया कि शायद कहीं शतरंज खेल रहें होंगे

इसी सूत्र को पकड़ कर दीदी
ने शतरंजी मित्रों के नाम खंगाले

 लगभग एक जांच एजेंसी जितनी जांच के बाद किसी ने

 दरियागंज के पार्क का पता दिया ।

जब दीदी पार्क पहुंची तब
शाम का अंधियारा घिरने को था और वह पार्क के लैम्पपोस्ट के नीचे सुल्तान अहमद अंकल
के साथ शतरंज खेलने में मसरूफ थे।

उनके पास ही भूख लगने पर
खाये गए चना जोर गरम के पुराने अखबार, चाट और कुलचे छोले की पत्तल और भुट्टे के
खोल बिखरे पड़े थे

आशंकाओं से लबालब भरी दीदी
की आंखों से आंसू बह निकले  और रूंधे गले
से दो बार पुकारने के बाद अगली चाल के घोड़े पर सवार  पिता ने उचटती हुई  नज़र उठाई

और रूंधे गले से कहे गए
‘घर चलो’ का उत्तर दिया

तुम चलो बेटा मैं आता हूँ

उन्हें अनुमान भी न था कि
तीन दिन गुज़र चुके हैं

न ही ये कि शतरंज के बाहर
भी एक दुनिया है जो उनकी मृत्यु की आशंका से भूकम्प में डोलती धरती की तरह  भीतर से बाहर तक कांप चुकी है।

 

बाद में इन्हीं सुल्तान
अहमद को

एक दिन जब घर पर खाने पर
बुलाया तो माँ को बताना भूल गए कि खाने पर बुलाया है

घण्टो उनसे बतियाने के बाद
चाय पिलाकर उन्हें जब रुखसत किया और बाद में माँ के खाना परोसने पर खाने की थाली
देखते ही चिल्ला पड़े कि अरे !

उसे तो खाने पर बुलाया था
!

शाम को ही फोन पर उनसे
मुआफी मांगी 

तो  सुल्तान अहमद ने यही जवाब दिया

 कि  वह
खुद हैरत में थे कि  एक भी बाज़ी खेले बिना
कैसे उठ जाने दिया!

खाने का क्या है वो तो
दूसरे आदमी के बिना भी खाया जा सकता है।

 

यह बात पिता ने  हंसते हुए माँ को बताई थी।

-उस हंसी में उन वक्तों की
दोस्ती का एक सुकून था

या उन वक्तों में बिछी थी
जो बिसात उसमें हार जीत से ज्यादा खेलने का शऊर था-

 

2

दरवाज़े

 

सम्बन्धों के मध्य द्वार खुले रखने चाहिए

ताकि बाते दरवाज़े से टकराकर
गिर पड़े

एक ही बिस्तर पर सोते हुए भी लोग एक अदृश्य दरवाज़ा बन्द करके सांकल चढ़ा देते हैं

 

कभी कभी असहमतियां भी बंद कर देती हैं खुले हुए द्वार

जबकि उन्हें
दरवाजों पर दस्तक
देनी चाहिए

कि धकेल कर  आतंकी
की तरह घर के भीतर घुस आना चाहिए

उन्हें करना चाहिए  इंतज़ार
दरवाज़ा खुलने का

ताकि अलग अलग रंगों
की बातें
एक साथ बैठकर चाय पी सकें

 

स्त्रियां  जानती
हैं

कि कब द्वार बंद करना है

और कब तमाम खतरों
के बीच भी खुला छोड़ देना है

वे इतिहास
के जंग लगे  बन्द दरवाज़े
भी अपने एक मासूम
सवाल की चाबी से  खोल देती हैं

और मृत्यु
का द्वार
भी पार कर जाती हैं दिन में हज़ार बार

भरे बाजार
के बीच बने घर  का दरवाजा भी वे खुला छोड़ देती है

कि दृश्यों
की हलचल से उनके एकांत भंग नहीं होते

उनके इंतज़ार
के अदीखे
दरवाजे भी हमेशा
खुले ही रहते हैं

दिखाई तब देते हैं जब वे धड़ाक से उसे किसी के मुहं पर बंद करती हैं

स्त्रियां जब बनती हैं माएं तो और ग़ज़ब करती हैं

अंधेरों से डरते बच्चों को वे अपनी आवाज़ की टॉर्च
थमा देती हैं

शिशु की निगरानी पर खुली रखती है आंखों की खिड़कियां

और स्नानागार
के द्वार

जब घुटनो
चलते हैं बच्चे तो वे बन्द कर देती हैं खतरों के द्वार

पर खुला रखती है शौचालय का द्वार

ताकि कमोड पर बैठ कर भी कर सकें निगरानी

 

वे कभी बन्द नहीं करतीं सम्वाद के द्वार

गालियों की ईंटों
के प्रहार
बस उनकी एक सख्त दृष्टि से भरभराकर
टूट पड़ते हैं

उनकी सहज   तस्वीर
भी एक द्वार हैं जिसे वे किसी सार्वजनिक दीवार पर एक चुनौती की तरह टांग देती हैं

कि करेंगे
वे आपत्तियां

 किन्तु  झांकते
हुए भी डरेंगे

कि उन्होंने
ही पोती है कालिख

उन्होंने ही चुनी हैं दीवारें

उन्होंने ही बिछाए
हैं अंधेरे

वही

वही हैं उत्तरदायी

उस क्षत विक्षत इतिहास के लिए

जिसकी झलक उस खुले दरवाज़े
के पार दिख रही है

 

(गीता यथार्थ
के लिए यह कविता
जो एक एकल माँ है और शिशु को पालने के दौरान
अक्सर बाथरूम का दरवाजा
खुला रखती थी ऐसी ही एक तस्वीर सोशल मीडिया
पर शेयर करने से उसकी काफी ट्रोलिंग हुई थी

 

3-

 

कमज़ोर विद्यार्थी भी धीमे धीमे मंज़िल पा ही लेते हैं

 

बहुत धीमे धीमे काम करती है वह

एक ही चित्र बार बार बिगड़ जाता है

माया पर एनिमेशन सीखते हुए अनेक तरह की तकनीकी समस्याओं से जूझती
चलती है वह

बमुश्किल एक प्रोजेक्ट
पूरा होता है तो उसकी प्रसन्नता
उसके व्यक्तित्व
में छलक आती है

चिड़िया की तरह उड़ने लगती है सबको बारीबारी दिखाने लगती है जैसे एक से दूसरी
डाल पर फुदक रही हो

फिर  अध्यापक खारिज कर देता है उसका बनाया टैंक या कुर्सी

जबकि जाने कितने
ही स्कूल
,
कॉलेज  या इस व्यावसायिक
पाठ्यक्रम  के सहपाठी  अचानक
पा गए हैं लाखों
की नौकरी

हर बार सब दौड़ कर आगे निकल जाते हैं उससे

रो पड़ती थी पहले 

पर मालती
नहीं घबराती
अब कभी भी

आत्मा में उतार ली है उसने कछुए खरगोश
की कहानी

आखिर धीमे धीमे ही सही उसने पास किया है स्कूल
और कॉलेज

वह पार कर जाएगी
इन तकनीकी
अवरोधों को भी एक दिन

असाध्य को भी साध लेगी

अभी तो निष्फल हो गए प्रयासों की नरम मिट्टी पर

एड़ी गाढ़ कर खड़ी हुई है ऊंचाई की तरफ मुहँ किये

ढलान पर फिसलने से खुद को रोक रखा है उसने

 

थोड़ी देर में फिर

दत्तचित्त होकर  बनाने लगेगी कोई 3d प्रोजेक्ट

बेशक बहुत धीमी है उसकी गति

बेशक  वह दोस्तों
की  रेस में पिट गई है

किन्तु हर पिछले
दिन  से बेहतर
होने की रेस उसकी जारी है

इस बार वह एक मुरझाया हुआ फूल बना रही है

जिसे खिले फूल से बनाना अधिक मुश्किल
है

 

 

 

 – लीना मल्होत्रा

Leena malhotra

9958837156

Leena3malhotra@gmail.com

 

 

 

 

 1.

they say no event in history is unique

the words we utter have been gardened on other
tongues

and all of us feel somewhat lonely and somewhat
in love when we see monsoon water trickle in all directions on the windshield

and the piercing red traffic signal tells you:
stop-

the weirdest thoughts come to my head when the
signal turns red.

maybe what makes us human is that we all start
off biting our nails

maybe what makes us different is that we breathe
differently

binary language is just breathe in- zero, breathe
out- one,

our breaths all have different histories.

no event in time is unique but sometimes you
experience it only once

then it keeps sinking in your head until it
becomes memory

until it no longer even exists, a faint shape, a
faint shadow,

only a color that disturbs miles of water,

when you look down at all that has passed.

sea water is so salty, rain water so gentle

rain was meant to trickle down your face and tear
open your lips,

give a gift of something sweet- to garden your
tastebuds

but rain doesn’t smell like rain when it rains in
the ocean

and all water turns to salt anyway,

the present is already the past- collecting,
collecting, collecting.

 

 

2. nobody landed on the moon

that single moment when humankind watched the
earth

descend upon a black sky with shoes firmly rooted

in otherworldly sand, did not happen

a big black bat with fingers long as stretched
bubblegum

picked up a wandering piece of rock suspended in
infinity

and the memory of the world on this side of the
atmosphere changed

our eyelashes collapsed the moment we chanced
upon the million pictures

of ‘man’s conquest’ on the glimmering digital
boards that spread like

dragons onto buildings we call our civilisation;
breathing a fire of blue red beams

that gently interrupt the loneliness of night,
falling upon your face like shadow

and convincing you that dreams are dreamt with
tired eyes unable to sleep, paralysed into staring at the screen. you sigh. you
didn’t land on the moon.

you are not sure if this news breaks you. clumsy
cars wheeze past

announcing they don’t care. the soy sauce in your
take-away roll

is dripping from the edge- salivating to be eaten

and your favorite stories happen at 8:30 pm

the guy who lost his wife feels affection for a
woman with a similar scent after twenty years but she too is going to die soon,
he doesn’t know yet, he’ll find at 8:45 pm today with six thousand other people

stories no longer live in the sky, nobody is
staring at you from behind the magnificent blue curtain that looks endless but
you can look at it for a minute and you’ve already made the big discoveries

the eternals- but you wouldn’t know that, you’ve
only lived for so long- measurable time sanctified by the birth certificate

they tell you the world has a story, you might
not be a character but you are a witness,

you walk home and cross walls lined with
graffiti- flowers that turn into birds but are stuck painted on a brick

they call out for help, but what can you do, it’s
the way of the world

the moon too is caged in the sky, like an
accidental white drop on a painting.

 

3.

the bones
on your back

reveal
all the times you don’t sit straight

like a
city of haphazard bridges

where
whoever walks is bound to fall.

you wish
your bones were smooth,

assembled
obediently to reveal beauty

but
cruelty has its crevices

and can
be found in every corner of the block

dirty,
drooling dustbins tell you

that
there isn’t enough for anyone-

let the
fight run in your veins and let

your
fingertips turn so cold

slide
them into your pockets

that are
full of harsh words you deserve

pick one
and bring it to your gentle lips

it’ll get
absorbed like wine, and

you too
will grow fangs.

 

– Antara rao

Antara.ar@gmail.com

9717503972

 

Leave a Reply