हिन्दी की पहली मौलिक कहानी — महेश दर्पण

    इस कहानी का प्रकाशनछत्तीसगढ़ मित्रमें अप्रैल, सन् 1901 में हुआ था। छोटीसी यह कहानी अपने कथानक और सुगठन के कारण याद रह जाती है। यहां माधवराव सप्रे अपनी पहली कहानीएक पथिक का स्वप्नकी भाषा और शैली से एकदम अलगएक टोकरी भर मिट्टीके माध्यम से कहानी की एक नयी ज़मीन और सोच की खोज करते नज़र आते हैं।

     कहानी की शुरुआत ही सामना कराती है जमींदार की लालसा से,
जो अनाथ विधवा की झोपड़ी हटा अपने महल का हाता और बढ़ा लेना चाहता है। अपने मितकथन में कहानी बताती है कि विधवा के पास इस झोपड़ी में व्यतीत आत्मीय पारिवारिक स्मृतियां हैं,
इसलिए वह बिना मरे वहां से निकलना नहीं चाहती। लेकिन गरीब की चाहत का किसी समृद्ध के सामने क्या मोल? झोपड़ी कब्जा ली जाती है और विधवा कहीं और रहने पर विवश हो जाती है। लेकिन उसकी पोती वहीं लौटने की जिद पर अड़ी, खानापीना तक छोड़ देती है। उसे सहज जीवन की राह पर लाने का उपाय विधवा को यही सूझता है कि झोपड़ी की ज़मीन से एक टोकरीभर मिट्टी लाकर चूल्हा बना ले। किसी तरह ज़मींदार से इजाजत ले,
वह एक टोकरी मिट्टी उठाकर बाहर ले आती है,
लेकिन उसे सिर पर रखे तो घर ले जाए!
कहानी यहीं पर एक असल कहानी बनने के लिए रचनात्मक मोड़ लेती है। सिर पर टोकरी रखने के लिए वह जमींदार से हाथ लगाने को कह देती है। वह बहुतेरी कोशिश कर देखता है, पर टोकरी हाथ भर ऊंची नहीं होती। ऐसे में जमींदार का हताश स्वर निकलता है
नहीं, यह टोकरी हमसे उठाई जाएगी।

     विधवा का उत्तर ही फिर इस कहानी को अपने समय की कहानी बनाता है। उसका वचन सुनते ही कर्तव्यच्युत ज़मींदार पश्चाताप करते हुए,
विधवा से क्षमा मांगकर उसकी झोपड़ी वापस कर देता है।

     पाठक देर तक विधवा के उस वज़नी संवाद की गूंज में बंधा रह जाता है
‘‘
महाराज नाराज हों,
आपसे एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोपड़ी में तो हज़ारों टोकरियां मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप जन्मभर क्योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।’’

     यह बीसवीं शताब्दी का एकदम प्रारंभिक चरण था, जब लालसा जबतब सर तो उठाती थी,
किंतु कर्तव्य की स्मृति जाने पर बुरे से बुरा इंसान भी इंसानियत की राह पर जाता था। इस कहानी को लंबे समय तक हिन्दी की पहली कहानी का दर्जा भले मिला हो,
लेकिन अब यह स्वीकारने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि यही हिन्दी की पहली मौलिक कहानी है।

     इसके संवाद कहानी का प्राण हैं। नातिविस्तार इसकी विशेषता और इंसानियत की राह पर वापसी इसका उद्देश्य। सच पूछें, तो बाद में प्रेमचन्द हिन्दी कहानी को जिस रास्ते पर ले गए,
उसकी प्रेरणा ऐसी ही कथा की ज़मीन रही होगी। यह कहना भी आवश्यक है कि हिन्दी के पहले आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने जिन कहानियों को प्रारंभिक के रूप में रेखांकित किया है
(
किशोरीलाल गोस्वामी कीइंदुमतीऔरगुलबहार’, मास्टर भगवानदीन कीप्लेग की चुडै़ल’, रामचन्द्र शुक्ल कीग्यारह वर्ष का समय’, गिरिजादत्त वाजपेयी की
पंडित और पंडितानीऔर बंगमहिला की
दुलाई वाली‘) वे सभी
एक टोकरी भर मिट्टीके सम्मुख कहीं नहीं ठहरतीं। उनमें अधिकांश को तो स्वयं शुक्ल जी ने मार्मिकता की दृष्टि से भावप्रधान रचनाएं कहा था। ठीक इसके उलटएक टोकरी भर मिट्टीका गठन और विचारतर्क उसे अपने समय की एक महत्वपूर्ण रचना बनाता है।

महेश दर्पण
सी-3/51,
सादतपुर,
दिल्ली– 110090
मो
9013266057

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