रंगों में खुलती एक आह : आर्टेमिज़िया

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

 

 

2011की मई में अपनी इटली यात्रा के दौरान मुझे वेनिस, फ्लोरेंस और मिलान जैसे कला के केंद्र शहरों में नितांत अकेले भटकना एक वरदान ही था. उसी भटकाव में रेनेसां के सुनहरे चरण के कई कलाकारों की
विश्वप्रसिद् कलाकृतियों को देखने का अवसर मिला. माइकल एंजेलो की बनाई पुरुष सौंदर्य के प्रतिमान – सी
डेविड और बेसिको बांदीनेल्ली के ‘लाउकून एंड हिज़ संस’ की मूर्तियोंके लिए प्रसिद्ध फ्लोरेंस कीउफ़ीज़ी गैलेरी तो मानो चित्रकला के भी मास्टरपीसों से भरी हुई थी.

मैं टिकट के लिए सुबह से लंबी लाईन में लगने की क़वायद के बावज़ूद, वहाँ के प्रवास के तीनों दिन सुबह
जल्दी उठ कर गई. जबकि वहाँ के नयनाभिराम बगीचे मुझे बुलाते रहते थे, लेकिन दाँते स्ट्रीट से होकर मेरी दौड़ ‘उफ़ीज़ी संग्रहालय’ तक की होती थी. दिन भर वहाँ के अनगिनत हॉल्स और गलियारों में भटक कर जिन्हें करीब से देर तक
देखने और महसूसने का अवसर मिला उनमें थीं बोतिसिली की विश्वप्रसिद्ध पेंटिंग वीनस का जन्म और ‘ला प्रिमवेरा’, राफेल की मेडोना ऑफ़ गोल्डन फिंच, टाईटियन की वीनस ऑफ अरबीनो .फ्लिप्पो लिप्पी  की ‘मेडोन विद सन’, कैरावैगियो की ‘ मेड्यूसा’,
फ्रा एंजेलिको की ‘ क़ोरोनेशन ऑफ वर्जिन’ और लियॉनार्डो डा विंसी की ‘एननसिएशन’. सच पूछिए तो रेनेसां के सुनहरे काल का कौनसा मास्टर पेंटर वहाँ नहीं था? 

तीसरे दिन हॉल नंबर नब्बे तक पहुंचने पर मेरा ध्यान खींचा एक अजीब सी पेंटिंग ने, ‘
जूडिथ बीहेडिंग हॉलोफर्नेस’. तमाम सुंदर मेडोना, मेड्यूसाओं, वीनसों, वर्जिनों,
हेडाओं के बीच हत्यारिन जूडिथ!!! कौन है यह सत्रहवीं सदी का पेंटर, जिसने रचा
जूडिथ को. वह जो चेहरे पर विद्रूप लिये, सफेद उन्नत छातियों पर खून के छींटे लिए
जुटी हुई है अपनी सर्वेंट के साथ इस पुरुष का कत्ल करने में! मैंने अंग्रेज़ी में
लिखा विवरण पढ़ा तो किसी ने जैसे आत्मा को झकझोरा यह एक महिला चित्रकार का बनाया
चित्र था. उस सदी वह एक ही फ्रेस्को कलाकार थी – आर्टेमिज़िया! पुरुष कलाकारों की
भीड़ में एक ग्रहण लगा सूर्य
, तमाम
अंधेरों के पीछे से दमक रहा था. वहीं पर मैंने आर्टेमिज़िया का बनाया ‘ सेंट
कैथरीन’ का पोर्ट्रेट देखा. कैटलॉग में लिखा था कि यह ‘कैथरीन की शक्ल में ख़ुफ
आर्टेमिज़िया का सेल्फ पोर्ट्रेट है. एक चौड़े माथे वाला बुद्धि प्रदीप्त चेहरा,
होंठ भिंचे, बड़ी आँखें और उभरे गाल. बस आर्टेमिज़िया जेंटिलस्की ( 1593 – 1652 )
कहीं मन में फाँस की तरह गड़ गई.

तब
से इतने साल बीत गए, गाहे – बगाहे, अजाने ही मेरा अवचेतन उस पर बहुत धीमे किस्म का
शोध करता रहा. जहाँ जो मिला आर्टेमिज़िया पर पढ़ डाला. उसके जीवन पर बनी एक जर्मन
फिल्म देख डाली.  समझ न आने पर भी, बिना
सबटाईटल मानो सब कुछ समझ लिया था.

बहुत
ज़हीन और चित्रकला में देहाकृतियों की बारीकी और स्थाई रंगों के विज्ञान की
मर्मज्ञ
, अपने समय से बहुत आगे चलने वाली  – आर्टेमीज़िया जेंटिलस्की, सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में अपार
सफलता पाने वाली एक महिला पेंटर थी। जो अपने काम में चपल गतियां
, नाटकीयता, भावपूर्णता, मानव शरीरों की अनूठी मुद्राओं के आयाम
लेकर आई थी।  निसंदेह तौर पर आर्टेमिज़िया
जैंटेलिस्की अपने समय की सबसे महत्वपूर्ण चित्रकार थी। यूरोप के रेनेसां के अंतिम
चरण तक में स्त्रियों को कला के क्षैत्र में मान मिलना बहुत कठिन हुआ करता था तब
उसने अपनी प्रतिभा की कौंध से पूरे यूरोप को चौंका दिया था। वह फ्लोरेंस की कला और
डिजाइन अकादमी ( एकेदेमिया देलो आर्टे डेल डिजैनो)  की पहली महिला सदस्य नामित हुई। यूरोपियन कला के समृद्ध इतिहास ने भले उसका नाम
सहज ही उपेक्षित कर दिया
,  लेकिन कला के इतिहास के बाहर उसकी
चर्चा खूब हुई
. आधुनिक समय में जब लोग उसे भूल सा गए
तब कुछ फेमिनिस्ट इतिहासकारों, विद्वानों ने उसके रचे हुए को और उसके लीक से हट कर
जिए गए जीवन को फिर चर्चा में ला खड़ा किया।

यह हैरानी की बात रही आर्टेमिज़िया के चित्र उनके समकालीनों के चित्रों की अपेक्षा कम
विनिष्ट हुए और आज भी वे अच्छी संख्या में यूरोप के तमाम मुख्य म्यूजियमों में
, महलों में उपलब्ध हैं। आर्टीमिज़िया को अपने समकालीन कला समीक्षकों और कलाकारों से सराहना भी मिली और प्रताड़ना भी, फिर भी उसे जीनियस हर किसी को कहना पड़ा, उसके विरोधियों को भी. पुरुषप्रधान कला की उस दुनिया और उस समय में उसका स्त्री होकर पुरुषों की बराबरी की प्रतिभा रखना उसे विचित्रऔर विकट अपवादबनाता था। लोग उसके चित्रों में पुरुष विरोधी सनक को देखते थे लेकिन उनको उसकी प्रतिभा का लोहा मानना पड़ता था।  हालांकि उसकी विलक्षण प्रतिभा को नकारने का हरसंभव प्रयास किया गया लेकिन आर्टेमीज़िया के चित्र भारी संख्या में आज तक संरक्षित रह गए, क्योंकि वे रंगों और कैनवासों और
फ्रेस्को पेंटिंग की गहन समझ रखती थीं। उसके चित्रों में बाइबल के वे पात्र चित्रित हुए जो स्त्रियों द्वारा वध किए गए थे या वे जिन्होंने स्त्रियों का अपमान किया हो।  ऐसा क्यूं था
, यह जानने के लिए, आइए, आर्टेमिज़िया जेंटिलस्की के जीवन के पन्नों को पलटें।

 

पंद्रहवीं और सोलहवी सदी में रोम के एक बहुत प्रसिद्ध पेंटर हुए थे. जो सीलिंग – फ्रेस्को (
महलों और चर्चों के गुंबदों  के भीतरी हिस्से और दीवारें)  पेंट करने के माहिर थे। नाम था उनका ” ओरेज़ियो जेंटिलस्कीं” ।  उनके घर पंद्रहवी सदी के आखिरी दशक में एक सुंदर और स्वस्थ बच्ची का जन्म हुआ। उसका नाम उन्होंने बड़े प्यार से रखा
, ” आर्टेमिज़िया”। ये कलात्मक नाम
ज़ाहिर है पिता ने ही दिया होगा । वह पिता की बेहद चहेती थी। बचपन ही से  वह पिता के साथ रंगों का मिश्रण और मोटे काग़ज़ों पर चित्र की प्रारंभिक रूपरेखाएं बनाना सीखती रही। यहां तक की उसने अपने भाइयों
को पीछे छोड़ दिया। आर्टेमिज़िया ग्यारह साल की हुई
, किशोरावस्था ने दस्तक भी न दी थी कि
उसकी मां प्रूडेंशिया का देहांत हो गया। 
सुंदर और चंचल आर्टेमिज़िया बहुत ज़हीन भी थी। लेकिन मातृविहीना सुंदर
आर्टेमिज़िया को वयस्क होने तक पढ़ाया – लिखाया न गया. वह तीन भाइयों की सबसे बड़ी
और इकलौती बहन थी।  वह पिता के मित्र चित्रकारों
– मूर्तिकारों, पिता की कला को प्रश्रय देने वाले धनिकों और शाही परिवारों के बीच
आते – जाते बड़ी हो रही थी.  यह कहना न
होगा कि वह कला के इतिहास का सबसे दिलचस्प समय था।  रेनेसां का अंतिम उठान!

 

माँ
की मृत्यु के बाद पूरे घर में केवल मर्दों की उपस्थिति आर्टेमिज़िया तंग आ जाती
थी। घर के अकेलेपन से वह भाग कर समुद्र किनारे आ जाती और वहाँ पतंग उड़ाती या फिर
मछुआरों के ऊपर से नंगे जिस्मों को देख – देख कर उनकी मांसपेशियां रचना सीखती
काग़ज पर। घर लौटती तो पिता अपने विशाल स्टूडियो और बाहर घर के बगीचे में बाइबिल
की घटनाओं के सेट्स लगाकर
, बाक़ायदा
मॉडल पात्रों के इस्तेमाल से अपने चित्र रचते थे. पहले मोनोग्राफ़ की तरह बनाते फिर
उन्हें फिर महलों की छतों और गलियारों की दीवारों पर रचते – रंगते. आस – पड़ोस के पुरुषों
, महिलाओं और बच्चों को सेट में शामिल कर
वे रोमन मिथकों, बाईबिल की कहानियों के देवी – देवता, राजा – रानी, देवदूतों की
देहाकृतियाँ बनाते थे. उनके समकालीन इन सेट्स के पात्रों के लिए नाज़ायज़ होने पर भी
गुलाम बच्चे और स्त्रियां खरीदते।  लेकिन ओरेज़ियो
जेंटिलस्की अपने पास – पड़ोस के बच्चों और स्त्रियों की मदद लेते और सेट समाप्त
होने पर घर में पार्टी देते।  इससे बिन मां
के बच्चों का दिल भी बहल जाता था। 
आर्टेमिज़िया की सहेलियों की पिकनिक हो जाती ।

 

पिता
की निगाह थी कि आर्टेमिज़िया चित्रांकन में अपने भाइयों को पीछे छोड़ रही है. हर
पल ये बात पिता परख रहे थे
कि
आर्टेमिज़िया के भीतर कोई बहुत बड़ा कलाकार सो रहा है.
उन्होंने तय किया कि वे अपनी बेटी को
एक बड़ी पेंटर बनाएंगे और वे उसे अपने साथ फ्रेस्को चित्रांकनों की साइट्स पर ले
जाने लगे. मुझे लगता है कि ऐसा नहीं था कि उस युग में अन्य महिलाएं चित्रकला में
प्रतिभावान नहीं रही होंगी
, बल्कि
उनको सीखने के लिए बड़े कलाकारों के स्टूडियो में आने – जाने की इजाज़त नहीं रही
होगी या रंग और कैनवास उनकी पहुंच से दूर होंगे । वह वह समय था जब आपको अपने लवणों
से, विभिन्न किस्म के पत्थरों के चूरों से रंग बनाने होते थे. वह भी ऑयल बेस्ड
पेंट !  लेकिन यह सौभाग्य था आर्टेमिज़िया
का कि वह रोम के प्रसिद्ध पेंटर की बेटी थी, जो उस समय के यूरोप की धनिकों और
राजशाही  द्वारा प्रश्रय पाने वाली बरोक
कला आकाश पर राज करने वाले कैरावैगियो के बहुत निकटतम मित्र थे, बल्कि दोनों मित्र
किसी सत्ता – प्रतिरोध में या मिथकों पर कलाकारनुमा चोट करने के कारण साथ जेल काट
चुके थे. यही वजह थी कि आर्टेमिज़िया का बचपन से रोम के हर बड़े कलाकार
, कला मर्मज्ञ से परिचय था। पिता की
महत्वाकांक्षा थी कि बेटी उनसे भी विलक्षण चित्रकार बने सोउन्होंने अपनी बेटी को
बहुत से समकालीन महान चित्रकारों से मिलवाया
, हरेक से आर्टेमिज़िया खूबियां सिखाने
को कहा। 

जैसा
कि मैंने पहले ज़िक्र किया कि  रोम में ही रहने
वाले उनके मित्र और गुरु  ‘ मैरिसी दा
कैरावैगियो’ के चित्रों से और उनकी छत्रछाया में उन्होंने बेटी को प्रकाश और छाया
का प्रयोग सिखवाया
, जिनका
सघन प्रभाव आगे जाकर आर्टेमिज़िया के चित्रों की बड़ी विशेषता बनता है। जब वे
अँधेरे में लैम्प के प्रकाश में जूडिथ को होलोफर्नेस का सर काटते, टोकरी में ले
जाते चित्रों की सीरीज़ रचती हैं. आर्टेमिज़िया ने चित्रकला के अलावा कुछ नहीं सीखा
, न वह स्कूल गई, वयस्क होने तक न पढ़ना सीखा, न लिखना। लेकिन सत्रह साल की उम्र में
उसने बाइबल से एक कथा चुन कर उस पर एक अद्भुत चित्र बना डाला –सुज़ाने एंड एल्डर्स
(
1610) , यह चित्र अपने समय में भी अपार प्रसिद्धि पा गया, बाद में तो आर्टेमिज़िया के बेहतरीन
चित्रों में कहलाया ही. आज भी यह चित्र प्राग के स्कॉनबॉर्न पैलेस में सज्जित है।

इस
चित्र में एक नग्न किशोरी सुज़ाने  को दो
अधेड़ छूने की कोशिश कर रहे हैं।  यह
बाइबिल की अनेक कहानियों में से एक कहानी पर आधारित है — एक सुबह किशोरी सुजाने
अपने बाग में नहा रही होती है
, वह
निगरानी करने वाली अपनी दासी को अपने नए वस्त्र लाने के लिए भेजती है
,तभी दो राजशाही और चर्च की सत्ता में
दखल रखने वाले गणमान्य अधेड़ उधर से गुज़रते हैं
.  दोनों
ही बाग़ की दीवार से सटी नग्न
सुज़ाने के साथ छेड़खानी करने लगते हैं। वह विरोध करती है तो उसे
कहते हैं कि – तुम हमें अपने साथमनमानी न करने दोगी तो हम तुम पर आरोप लगा देंगे
कि तुम अपने युवा प्रेमी के साथ बगीचे रंगरलियां मना रही थीं। सुज़ाने नहीं मानती
है
,  विरोध
करते हुए वह नौकरानी को आवाज़ देती है तो वे वहाँ से भाग तो जाते हैं किंतु
 उसे आरोपित कर दिया जाता है, कि वह खुले में प्रेमी के साथ मदांध हो युगलरत
थी.
बात मृत्युदंड
तक पहुंचती है। तब एकराजकाज में दखल रखने वाला युवक डैनियल उन बूढ़ों से सख़्ती कर
उनसे सच उगलवाता है और सुज़ाने बच जाती है।

उन
दिनों कोई भी चर्च से परे न था, बल्कि माईकलएंजेलो की तो चर्च से झड़पें हुईं थी,
बाईबल की कथाओं को, मिथकों को मनमाना रचने की. इसलिए आर्टेमिज़िया ने भी मिथक रचे लेकिन
बात यहां यह ग़ौर करने वाली थी कि उस युग में सत्रह साला आर्टेमिज़िया ने आखिर यही
कहानी क्यूं चुनी थी
?  चुनी तो चुनी मगर  बहुत मार्मिक ढंग से इसे रचा।  किशोरी सुज़ाने के चेहरे का भय – भोलापन और बस के
बाहर माँसल देह जो छिपाए नहीं छिप रही. बाउंड्री वॉल ऊपर से झाँकते और छूते दो
अधेड़ और उनके चेहरे पर चित्रित कुत्सित लिप्सा! एक किशोरी के लिए यह यथार्थ रचना
बहुत बड़ी बात थी. यह उसका सबसे प्रसिद्ध चित्र बन गया। बल्कि उसका पर्याय.

पिता,
भाई, मनचाही कला और सुंदर घर, सब कुछ बहुत सुंदर था आर्टेमिज़िया के जीवन में ! नियति
हिचकिचाती है, जब सबकुछ सुंदर हो वह भी एक कलाकार के जीवन में? नियति कलाकार को
विचलन उपहार में देती ही है कि यह न जिया तो तुम कहां के कलाकार
? क्या हस्ती हुई फिर तुम्हारी? ओरेज़ियो के साथ काम करते हुए अपने कद में ऊँची निकल गई, लंबी
उंगलियों से जादू रचती किशोरी आर्टेमिज़िया पर पिता के हरेक साथी पेंटर का ध्यान
गया. कुछ का ममता से तो कुछ का…. प्रवृत्तियाँ कब बदलई हैं? युग बदल गए,
सख़्तियाँ, कानून – सज़ाएं इन प्रवृत्तियों के समानांतर चलती रहीं हैं. घर से बाहर
निकली हो तो निगाहें तो झेलनी होंगी. अवसर पड़ गया तो….

 

1611
में ऑरेज़ियो अपने कुछ सहयोगी पेंटरों कॉसिमो क्वार्लिस और ऑगस्टीनो तासी के साथ
रोम में पैलेवीसिनी रोस्पिग्लियोसी पैलेस का वॉल्ट्स नृत्य करने वाले हॉल की सज्जा
कर रहे थे. वहाँ उन्होंने तासी की ‘ लैंडस्केपिक – पर्सपेक्टिव ‘ के गुण को देखा.
तुरंत ही उन्होंने तासी को उनकी बेटी आर्टेमिज़िया को अपना यह गुण सिखाने को कहा. उन
दिनों पिता ओरेज़ियो किशोरी बेटी आर्टेमिज़िया को घर पर अकेला न छोड़ कर साथ ले
आया करते थे। आर्टेमिज़िया भी लगातार पिता के साथ काम करवाती थी.वहीं उन्होंने
आर्टेमिज़िया को तासी से मिलवाया कि तासी
पर्सपैक्टिवका विशेषज्ञ है आर्टेमिज़िया को सीखना
ही चाहिये
कला का यह आयाम भी। उन दिनों कॉसिमो अकसर
आर्टेमिज़िया को एकांत में पाकर छेड़ – छाड़ कर देता था. भय के और माहौल खराब हो जाने
की आशंका से आर्टेमिज़िया सह लेती थी और कॉसिमो से दूरी बरतती. ऑगस्टिनो तासी से
उसने पर्सपेक्टिव समझना शुरु कर दिया था. वह एक दूरी तासी से भी रखती और एकांत में
पिता के इन दोनों सहयोगियों से बचती.  यह
नेपल्स में सब जानते थे कि ऑगस्तीनो तासी 
का चरित्र ठीक नहीं था
, उस
पर अपनी साली से विवाहेतर संबंध रखने और पत्नी को पैसे देकर हत्या कराने के एक
असफल प्रयास के मुकदमे भी चल रहे थे।  किंतु
बेटी आँखों के सामने सीखती थी तो पिता को भरोसा था।  तासी फिर भी सुंदर
, सुडोल गढ़न वाली आर्टेमिज़िया से
आकर्षित हो गया। वह भी उसे सिखाते समय यहाँ – वहाँ छूने का लगातार प्रयास करता। इसी
दौरान आर्टेमिज़िया ने ‘सुज़ाने’ को रचा था, दो अधेड़ों से बचती ‘सुज़ाने’.

 

रोम
का काम ख़त्म होने पर ओरेज़ियो को अन्य पड़ोसी रज्यों से आमंत्रण आते थे. ऎसे में आर्टेमिज़िया
को कई बार घर में भाइयों के बीच अकेला परेशान देख कर उसके पिता ने एक महिला को
अपने विशाल घर के ऊपरी हिस्से में किराए पर रख लिया था. यह टूज़िया थी, जो अपने पति
से अलग होकर अकेली रहती थी. टूज़िया से आर्टेमिज़िया ने दोस्ती कर ली. शातिर कॉसिमो
और तासी ने भी टूज़िया से दोस्ती बढ़ा ली और ऑरेज़ियो की अनुपस्थिति मॆं उसके घर आने –
जाने लगे.

कहानियां
कहती हैं कि – आर्टेमिज़िया
, बिन
मां की बच्ची थी। वह टूज़िया के साथ दिन भर यहाँ- वहां घूमती थी।  कभी समुद्र तट पर पतंग उड़ाती। वांछित –
अवांछित सब देखती थी। किशोरावस्था में उसका एक मछुआरा लड़का दोस्त था। एक रोज़
उसने एक चुंबन के बदले समुद्र तट उसे निर्वस्त्र होने को कहा
, वह उसे दीवार के सहारे खड़ा कर उसकी
मांसपेशियों को छूकर महसूस करती और चित्र बनाती रही।  ऐसे कई नग्न पुरुष देह के कोल से बने चित्र थे
, जिनको उसने तासी को एकरोज़ दिखाया, जब
पिता घर पर नहीं थे। तासी उसकी कला पर हैरान तो हुआ ही साथ ही उन चित्रों को देख
कर तासी को लगा कि आर्टेमिज़िया कुंवारी नहीं है। 
आर्टेमिज़िया का चरित्र कमज़ोर है। टूज़िया के चलते वह आर्टेमिज़िया से भी
उसके घर में मिलने लगा था.

1612 के बसंत में एकरोज़ तासी ने टूज़िया
को बहला फुसला कर उसके अपार्टमेंट में से नीचे उतर कर आर्टेमिज़िया को उसी के
निर्जन घर में घेर लिया । आर्टेमिज़िया के बयान में उल्लेखित है कि तासी अपने दोस्तों
, नौकरानियों की सहायता से यह कोशिश करता
था कि वह अकेले में उससे टकरा जाए। एक दिन जेंटिल्सकी परिवार के घर में
, स्वयं आर्टेमिज़िया के शयनकक्ष में वह
ऐसा अवसर जुटाने में सफल हो ही गया और उस दिन ….. वह उसे शयनकक्ष के बाहर रखी
उसकी एक पेंटिंग के बारे में सलाह देते हुए
, उसे धक्का दे कर बेडरूम में गिरा दिया।
वह उठती उससे पहले उसने उसे बिस्तर पर पटक दिया. वहाँ आर्टेमिज़िया की मर्ज़ी के
ख़िलाफ उसके साथ दैहिक संबंध कायम कर लिया. वह चिल्ला – चिल्ला कर टूज़िया को
बुलाती रही, लेकिन टूज़िया ऎसे बनी रही जैसे कि उसने कुछ नहीं सुना.

क्या
यही वजह है कि आर्टेमिज़िया के चित्रों में स्त्रियों की आपसी एकता, दृढता के साथ
दिखती है. आर्टेमिज़िया उम्मीद से भरी, साहसिक चित्रकार तो है ही. वह चित्रों में
वह सब दिखाती है जो दरअसल एक मजबूत स्त्री में होना चाहिए. अपने दमनकारी का दमन और
स्त्रियों का एका!

तासी
बहुत शातिर और अपराधी किस्म का पेंटर था वह बाद में भी उससे प्रेम और विवाह की
दुहाई देकर उससे देह संपर्क बनाता रहा। उसने उसका कहीं और विवाह होने में भी
अड़चनें डाली। ऐसा अकसर होने लगा कि ओरेज़ियो को तासी और आर्टेमिज़िया
, फ्रेस्को की साईट से गायब मिलते। एक
दिन चिंतित पिता ने दोनों को पकड़ लिया। तासी पर बेटी से विवाह के लिए दबाव डाला।
तासी के मुकर जाने पर पिता ने मुकदमा दायर कर दिया। उसकी अनुपस्थिति में उसके घर
आकर जबरन उसकी बेटी का कौमार्य भंग करने का मुकदमा. उन दिनों किसी कन्या कौमार्यभंग
बहुत बड़ा अपराध माना जाता था।  कन्या के पिता
के मुकदमा करने पर इस जुर्म के लिए ताउम्र कैद और हाथ या पैर काट देने की सज़ा आम
थी।

 

मुकदमें
में बाक़ायदा तासी पर रेप ट्रायल हुआ
, उसके जेल जाने की नौबत आई तो उसने वही हथकंडा अपनाया, जो हर बलात्कारी अपनाता है। कहा कि
उसने आर्टेमिज़िया का कौमार्य भंग नहीं किया
, वह पहले से दुष्चरित्र रही है। उसके कई
पुरुषों से रिश्ते रहे हैं। वह कॉसिमो को भी मादक संकेत देती रहती थी. उसका पिता
ऑरेज़ियो खुद उसे अपने छोटे – मोटे फायदों के लिए यहाँ – वहाँ भेजता रहता है.
आर्टेमिज़िया उसे कामुक पत्र लिखती रही है. वह जिनको पेश भी कर सकता है. जबकि सच तो
यह था कि तब ता आर्टेमिज़िया को लिखना बिलकुल नहीं आता था, वह बस अपने हस्ताक्षर कर
पाती थी. इस तरह वह तरह – तरह के झूठ बोला कि आखिरकार जज को कहना पड़ा कि – झूठ मत
बोलो
,  झूठ पर
मुकदमा हार जाओगे.
थोड़े
दिन पहले तुमने इसके विपरीत बयान दिया  था।

ऑरेज़ियो
ने तासी पर एक और आरोप लगाया कि उसने कॉसिमो के साथ मिलकर उसकी अनुपस्थिति में
उसकी और उसकी बेटी की बनाई कुछ पेंटिगें और मोनोग्राफ़ चुराए हैं. ये मोनोग्राफ़ वही
थे जो आर्टेमिज़िया ने नग्न किशोर मित्र के बनाए थे. उसने अपने मित्र कॉसिमो द्वारा
चुराए वो चित्र मंगवाए और इन नग्न चित्रों के चलते कुछ समय के लिए पासा उलटा पड़
गया। इन्हीं चित्रों और बेहूदा प्रतिआरोपों के चलते आर्टेमिज़िया का
रेप ट्रायलहुआ, सबके सामने चर्च की ननों ने एक चादर
डाल कर आर्टेमिज़िया के कौमार्य का परीक्षण किया गया ।  वर्जिनिटी ट्रायल के दौरान उस समय के खतरनाक
औज़ारों का इस्तेमाल हुआ। उसके हाथ बांध दिए गए। अंगूठों पर लोहे के क्लिप्स लगा
दिए गए जिससे उसकी उंगलियां ज़ख़्मी हो गईं। सबके सामने एक चादर के नीचे हो रहे उस
वर्जिनिटी ट्रायल के दौरान उससे लगातार पूछा जाता रहा
, क्या सच में तासी ने बलात्कार किया?  वह रोते – कराहते हुए कहती रही, ” हाँ यह सच है। सच है.

कहते
हैं ऑगस्टीनो तासी प्रतिभावान आर्टेमिज़िया को पाने के पीछे पागलपन की हदें पार कर
चुका था
, उसने ओरेज़ियो की पसंद के मॉदेनेस नामक सुंदर
– अमीर युवक से उसका विवाह होने नहीं दिया। वह उस पर जासूसी करवाता था कि वह किस
से मिल रही है, किस से बात कर रही है । शादी का बहाना कर वह आर्टेमिज़िया के पिता
ऑरेज़ियो को भी बहलाता रहा और उसके सामनए भी आने – जाने लगा.  वह लोगों से कहता फिरता कि
आर्टेमिज़िया को कन्या से स्त्री मैंने
बनाया है।
 आखिरकार तासी के ख़िलाफ़ कौमार्य भंग का जुर्म
साबित न हुआ
, क्योंकि विवाह का झांसा देकर वह लंबे
समय से उसके साथ शरीक़ था।  उसे बस एक साल
की सज़ा हुई. इस संदर्भ में कुछ मिथकीय धारणाएं हैं
, जिन्हें आर्टेमिज़िया के जीवन पर एक जर्मन फिल्मकार
एग्नेस मर्लेट ने बनाई अपनी फिल्म
आर्टेमिज़ियामें भी दिखाया गया है कि तासी से
आर्टेमिज़िया प्रेम करती थी. हालांकि वह उससे मिलने से पहले वर्जिन थी. तासी के
विवाह के लिए आनाकानी करने पर पिता ने गुस्से में उस पर ‘बेटी के कौमार्य भंग’ का
मुकदमा किया था. झूठ के आरोप में आर्टेमिज़िया को भी सजा सुनाई गई कि उसकी
उंगलियां काट दी जाएं लेकिन ऑगस्तीनो तासी को गहन अहसास हुआ कि एक युवा
, विलक्षण चित्रकार के लिए उंगलियां खोना
कितना त्रासद होगा
, उसने
अपना जुर्म कुबूल कर लिया। उसे एक साल की सज़ा मिली। यह पूरा प्रकरण रोम में हर
कान तक पहुंचा। जेंटिलस्की खानदान और प्रसिद्ध चित्रकार पिता – बेटी की बहुत
बदनामी फैल गई। रोम में किसी राजकीय संग्रहालय में आज भी इस सात महीने तक चले इस
मुकदमे यानि
रेप ट्रायलके लिखित दस्तावेज उपलब्ध हैं, जिनमें हर बारीक जानकारी लिखी है, बाद
के कुछ पन्ने ज़रूर खो गए हैं. यह सच मॆं बहुत अजीब बात है कि इस ट्रायल के
दस्तावेजों में चित्रकार के कोल से बने न्यूड मोनोग्राफ
भी 664 पन्नों के सबूतों, बयानों, विश्लेषणों, फैसले के साथ में नत्थी किये गए रखे हैं। आर्टेमीजिया का
अपना दर्दनाक बयान ज़िंदा है – जिसमें से निकली आह सदियों के पार तक न केवल काग़जी
दस्तावेजों में बंद बल्कि उसके चित्रों में मुखर हो कर हम तक पहुंच गई है ।

हाँ जब मैं फर्श पर गिरी थी तब मैं चीखी थी.
मैंने टूज़िया को पुकारा था. उसने सुना नहीं वह कहती है कि उसकी खिड़कियाँ बंद थीं.
वह कुछ देर पहले तो उन्हीं खिड़कियों से सीढ़ी उतरते तासी को हाथ हिला रही थी. यकीन
मानिये मैं बहुत घबरा गई थी. मैं नहीं बता सकती उस पल क्या हुआ था.
मुझे बहुत तीखा दर्द और जलन हुई। मेरे
मुंह पर उसने हाथ रखा हुआ था सो मैं चीख न सकी। मैंने उसका मुंह खरोंचा
, बाल खींचे।  उसने मेरे कपड़े उठा दिये थे. हाँ मैंने पूरा
विरोध किया यहाँ तक कि वह मुझमें धंसता उसके पहले मैंने उसका लिंग कसकर पकड़ लिया
था
, बल्कि उसकी चमड़ी छिलकर मेरे नाखूनों
में आ गई थी। “

इस
ट्रायल के दौरान यातना में डूबी आर्टेमिज़िया ने अपनी प्रसिद्ध पेंटिंग बनाई
, ‘ जूडिथ – होलोफर्नेस (1612-1613) जिसे लोगों ने “रेप ट्रायल”
भी नाम दे दिया। यह भी बाइबिल की कहानी पर आधारित चित्र है। जो आज फ्लोरेंस की
उफ़ीज़ी गैलेरीमें नब्बे नंबर हॉल में अपने वरिष्ठ और
अपने पिता के समकालीन कैरावैगियो के चित्र और अन्य पुरुष चित्रकारों की पेंटिंग के
साथ सज्जित है और बहुत प्रसिद्ध है। लोग इसके आगे ठहरे बिना नहीं रहते. इस चित्र
में रचित जूडिथ एक विधवा युवती है
, जो
उसके पति की मृत्यु के ज़िम्मेदार और शहर को नष्ट करने वाले दुश्मन असीरीयन सेनापति
हॉलोफर्नेस के ख़ेमे में अपनी नौकरानी के साथ जाती है
, उसे शराब और सुंदरता से बहका कर पवित्र
क्रॉस से गर्दन काट कर टोकरी में रख कर ले आती है। किंतु शहर उसे तब भी कुलटा की
उपाधि से नवाज़ता है. यह पेंटिंग आर्टेमिज़िया का भीतरी दर्द और घुटा हुआ आक्रोश
दर्शाती है। इस के बाद भी इस कहानी की सीरीज़ में आर्टेमिज़िया ने बहुत जीवंत
चित्र बनाए।  कहते हैं कि उसके हॉलोफर्नेस
की शक्ल तासी से मिलती – जुलती थी और जूडिथ के चेहरे में आप खुद देखें कि कितनी
आर्टेमिज़िया है कितनी जूडिथ.

इस बलात्कार
और सात माह लंबे ट्रायल में हुए दुष्प्रचार के चलतेजब तासी जेल में था तभी
जेंटिलस्की परिवार आर्टेमिज़िया को लेकर रोम से फ्लोरेंस आ गए. इस बारे में कुछ अलग
धारणाएं भी हैं कि आर्टेमिज़िया रेप के बाद गर्भवती थी, फ्लोरेंस में आकर उसने बेटी
को जन्म दिया फिर विवाह किया. दूसरी यह कि आर्टेमिज़िया का विवाह फ्लोरेन्स के ही एक
कलाकार से तय कर दिया गया था. वहाँ माईकल एंजेलो ब्यूनोरत्ती यंग ( मईकल एंजलो के
भतीजे) ने इसकी कला को प्रश्रय दिया। शीघ्र ही उसके प्रभाव से गर्भवती
आर्टेमिज़िया का विवाह पिता ने एक कलाकार और सभ्रांत युवक पियेत्रो अंतोनियो डी
विनसेन्जो स्तियात्सी से तय कर दिया
, जो खुद एक पेंटर था। तीसरी धारणा यह कि आर्टेमिज़िया ने विवाह के बाद
ही गर्भधारण किया. पहली पुत्री को जन्म दिया.

खैर
यह तो तय है कि फ्लोरेंस जाकर
1613
में आर्टेमिज़िया ने जूडिथ – हॉलोफर्नेस कहानी का अगला हिस्सा पेंट किया
जूडिथ एंड हर मेड सर्वेंटजिसमें दोनों मिलकर हॉलोफर्नो का सिर
ले जा रही हैं। ये चित्र कमाल के जीवंत हैं। बहुत मारक तौर पर चमकीले
, स्पष्ट और भावपूर्ण हैं। रात के अंधेरे
में खेमे में घुस हॉलोफर्नो जैसे बलशाली का सर काट टोकरी में लाने वाली जूडिथ के
चेहरे पर राहत
,
डर और चौकन्नापन बहुत बारीकी से
चित्रित है।  चित्र लेख के साथ हैं
, अपनी कथा खुद कहते हुए ।  हाथ कंगन को आरसी क्या!

 

 

फ्लोरेंस
में आर्टेमिज़िया ने बेटी को जन्म दिया जिसका नाम प्रूडेंशिया पालमिरा रखा
गया।  प्रूडेंशिया आर्टेमिज़िया की मां का
नाम भी था।  फ्लोरेंस ने आर्टेमिज़िया की
प्रतिभा को भरपूर मान दिया और वह एकैडमी ऑफ आर्ट एंड डिजाईन की पहली महिला सदस्य नामित
हुई । कला की दुनिया में यह बहुत गौरव का विषय था उन दिनों। पुरुषों में भी गिने –
चुनों को यह अवसर मिलता था. उन दिनों के हिसाब से यह बहुत बड़ी बात थी.  मैडिसी परिवार के तत्कालीन ग्रांड ड्यूक ऑफ
टस्कनी से लेकर माइकल एंजैलो के भतीजे
, और खगोल वैज्ञानिक गैलीलियो तक आर्टैमिज़िया की कला के प्रशंसक और
पारिवारिक मित्र रहे थे। कहते हैं तोस्कन के ग्रांड ड्यूक ने उनकी 
जूडिथ – हॉलोफर्नोसीरीज
की पेंटिंग शौक से तो बनवाई
, लेकिन
चित्र की मारक आक्रामकता देख उसे अंधेरे कोने में लगवा दिया था, जिसे देख
आर्टेमिज़िया को दुख़ पहुँचा था.  माइकल
एंजलो के भतीजे ने माइकल एंजेलो के जीवन पर उसके महल
कासा ब्यूनोरत्तीमें बहुत सारा काम करवाया.  उसके काम पर अच्छा पैसा भी दिया। ‘ कासा
ब्यूनोरत्ती’ फ्लोरेंस शहर के बाहर हसीन वादियों में बना एक बहुत सुंदर महल है
जहाँ माईकल एंजलो की सतरह पीढ़ियाँ रहीं. अब खबर यह है कि वह महल नीलामी वाली
वेबसाईट पर करोड़ों डॉलर में उपलब्ध है. 

यहाँ
उसने एक बहुत खूबसूरत पैनल पेन्ट किया हुआ है
, जिसकी बाँई तरफ एलीग्री ऑफ़ द इनक्लिनेशन यानि प्राकृतिक प्रतिभा शीर्षक से एक नग्न युवा
स्त्री का हाथ में कम्पास लिए एक ख़ासचित्र रचा था, जो उसका  अपना अंतस प्रस्तुत करता था.
 फ्लोरेंस रह कर आर्टेमिज़िया की पारिवारिक
मित्रता और भी कई प्रतिष्ठित लोगों से हुई
, जो अपने समय के प्रसिद्ध लेखक, वैज्ञानिक, दार्शनिक रहे थे। इस माहौल को देख कर
ही फ्लोरेंस आकर आर्टेमिज़िया ने लिखना – पढ़ना शुरु किया. बल्कि बाद के वर्षों में
उसने गैलिलियो जो विश्वप्रसिद्ध और खगोलशास्त्र के जनक रहे हैं, उनको पत्र भी लिखे.
ग्रांड ड्यूक से गैलिलियो के भी संबंध थे, तो तोस्कन के ग्रांड ड्यूक ऑफ मैडिसी की
मृत्यु के बाद आर्टेमिज़िया के फंसे हुए पैसे दिलवाने में गैलीलियो ने सहयोग किया
था. 

आर्टेमिज़िया
महिला थी
, जहां उसे पुरुष समकालीनों से खूब ईर्ष्या
मिली
, वहीं महिला होने का फायदा भी मिला।  लाइव मॉडलिंग उन दिनों निषेध थी।  पुरुष चित्रकार, मूर्तिकार आदि गुलाम औरतें खरीद चोरी –
छिपे मॉडलिंग करवाते थे। आर्टेमिजिया सहज ही महिला मित्रों या अपनी सेविकाओं से यह
सेवा ले लेती थीं।  फ्लोरेंस में उसने बहुत
काम किया.  आर्टेमिज़िया के चित्र अपने
जलते हुए रंगों और पात्रों के चेहरे पर रची मूक पीड़ा में भी यह कहते हैं कि वह
जीवन भर अपने
रेप ट्रायलकी आंतरिक यातना से उबर नहीं सकीं।
उसने स्त्री के सम्मान के पक्षधर चित्र ही रचे
, लगातार, बार बार।  उसके लिए जीवन और कला हमेशा आपस में गुंथे रहे,
कभी अलग न हो सके.

महिलाओं
के जीवन में सफलताएं अकेली नहीं आतीं, साथ में अफवाहों की सहेलियाँ आती है. उस पर
आर्टेमिज़िया, सुंदर, अमीर, अपार प्रतिभा की धनी, बुद्धिमान और आज़ादख़्याल .
इर्ष्यालू समकालीनों ने अफवाहों को हवा दी. लोगों ने कहना शुरु किया कि उसने तासी
को फंसाया था, झूठे रेपकेस में. उसके पिता का रोम के रसूख़दार लोगों से संबंध था
इसलिए बरी हो गई. देखिए तभी इसके चित्रों में पुरुषों के प्रति हिंसात्मक भावना
है.

जैसा
कि होना ही था आर्टेमिज़िया की प्रसिद्धि और कला से अर्जित सम्पत्ति के बावजूद पति
को कुछ अखरने लगा, उसकी कला को कीमत देने वाले उसे चुभने लगे. उसकी प्रतिभा के
गणमान्य प्रशंसक प्रेमी लगने लगे. कलाकाराना मिजाज़ की आर्टेमिज़िया में
आत्मस्वाभिमान की कमी न थी, उसने तुरंत फ्लोरेंस छोड़ दिया. दोनों बेटियों को लेकर
आर्टेमिज़िया
1621 में फ्लोरेंस से रोम लौट आईतब उसके
पिता ऑरेजियो जेनेवा जा चुके थे. रोम में व्यवस्थित होते ही वह अपनी बेटियों को
रिश्तेदारों और नौकरानियों के साथ छोड़ वह जैनेवा के गणमान्यों के आमंत्रण पर अपने
पिता के पास जैनेवा चली गई। वहां उसने
ल्यूक्रेशिया ( 1621) को चित्रित किया तो उसके अगले साल क्लियो (1622) को। यहाँ उसने पिता से उनकी कला को गहराई से
सीखा. कला-समीक्षक कहते हैं कि बेटी आर्टेमिज़िया और पिता ऑरेज़ियो के चित्रों में
कई बार इतना गहरा साम्य होता है कि यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि दोनों में
किसकी पेंटिंग है. पिता – पुत्री की जोड़ी ने जेनेवा में बहुत काम किया.  उसी दौरान वेनिस में उन्हें सम्मान मिला और वे
एंतोनी वान डायक से मिलीं
, जो
उस काल के प्रसिद्ध पेंटर थे। 
1627 में स्पेन के किंग फिलिप ने भी उसकी
कला को प्रश्रय दिया। स्पॆन के महलों की दीवारों ने आर्टेमिज़िया की कूंची के
स्पर्श पाए और खिल गईं.

इसी
दौरान आर्टेमिज़िया की मित्रता एक कला संग्राहक कासिनो दा पोज़ो से हुई.  जिसने आर्टेमिज़िया के बहुत से कैनवास संग्रहीत
किये. जैसा कि सोचा था, आर्टेमिज़िया को रोम आना उतना नहीं फला – उसकी अपार
प्रसिद्धि, प्रभावी व्यक्तित्व और बहुत सी अच्छी मित्रताओं के बावजूद. रोम आकर उसके
चित्रों से उसका  अपना अंदाज़, वह गहन मारक
प्रभाव और मूक संवाद जैसे कहीं सो गया हो. बाइबिल की वो स्त्री प्रधान नायिकाएँ
अपना असर खोने लगीं. रोम में उसे कोई बड़ा प्रोजेक्ट भी नहीं मिला. पिता के रहते
उसका काम चलता रहा, वह बेटियों को बड़ा करने में जुट गई. रोम में आर्टेमिज़िया के
बिताए इन सालों का ज़िक्र नहीं मिलता, लेकिन यह डॉक्यूमेंटेड है कि 1627 और 1630
में वह वेनिस गई शायद किसी ज़्यादा फ़ायदा दिलाने वाले प्रोजेक्ट की तलाश में. उसके
पत्र और उसके चित्रों की प्रशंसा के पत्र वेनिस में संग्रहीत हैं. यहाँ उसने
अमीरों के पोर्ट्रेट ही ज़्यादा बनाए. लेकिन ‘स्लीपिंग वीनस’ भी इन्हीं दिनों की
सौगात है जो आज वर्जिनिया म्यूज़ियम ऑफ फाईन आर्ट्स में सज्जित है.   

1630
में आर्टेमिज़िया काम और आर्थिक अभाव के चलते नेपल्स चली आई. जहाँ बहुत सी वर्कशॉप
होती थीं और कलाप्रेमियों यह गढ़ था. यहाँ आकर ‘अनन्सियेशन’ शीर्षक से एक चित्र
उसने नेपल्स को दिया जो कापोडीमोंते म्यूजियम में आज भी संरक्षित है. नेपल्स
आर्टेमिज़िया के लिए दूसरा घर बन गया था. यहाँ उसने अपनी बेटी पालमिरा की शादी की,
जो खुद एक पेंटर बन गई थी. एक यात्री बुलैन रेम्स की डायरी में ज़िक्र मिलता है कि
वह आर्टेमिज़िया और उसकी बेटी पालमिरा से अपने ब्रिटिश सहयात्रियों के साथ जाकर
मिला था.  अब तक उसे बहुत से सम्मान और
सम्मान – पत्र वायसराय, ड्यूक ऑफ अल्सला आदि से मिल चुके थे. नेपल्स में पहली बार
आर्टेमिज़िया ने कैथेड्रल ( एम्फीथियेटर ऑफ पॉज़ोली)  में चित्र बनाए, सेंट जैन्युरियस को समर्पित
चित्र. अब उसका धार्मिक रुझान बढ़ने लगा था, उसने सेंट जॉन द बैप्टिस्ट का चित्र
बनाया जो मैड्रिड के प्राडो म्यूज़ियम में सजा हुआ है.

वैसे
आर्टेमिज़िया पिता से अलग रही काफी समय
, किंतु एक रॉयल प्रोजेक्ट के चलते 1638 में वह इंग्लैंड  अपने पिता के साथ गईं और किंग चार्ल्स प्रथम
जैसे कलाप्रेमी राजा से कला के ज़रिये जुड़ीं। 
पिता पुत्री की जोड़ी ने क्वीन ऑफ इंगलैंड हैनरिटा मारिया के ग्रीनविच
स्थित महल की छतों और दीवार पर जड़े कैनवासों को अपने चित्रों से सजाया।  उसने यहां एलेगरी ऑफ पीस
, कला की देवी के कई स्वरूपों, क्लियोपैट्रा, इतिहास की देवी को चित्रित किया। 1639 में आर्टेमिज़िया का जीवन स्तंभ बने
पिता ओरेजियो जेंटिलिस्की दिवंगत हो गए
, फिर भी आर्टेमिज़िया 1638 से
41 तक इंग्लिश कोर्ट में चित्रकार
की  हैसियत से मेहमान बनी रहीं। अपने
चित्रों से दरबार को समृद्ध किया।

जब
सिविल वार के आसार बने
1641 , किंग चार्ल्स प्रथम की युद्ध में मृत्यु हो गई तो आर्टेमिज़िया ने
नेपल्स की तरफ़ रुख़ किया । इस तरह यूरोप में जगह जगह पर सम्मान और स्नेह पाकर वे नेपल्स
लौट आईं। आर्टेमिज़िया अब उम्रदराज़ होने लगी थीं. बेटियाँ अपने – अपने घर बसा चुके
थीं. इस दौरान उसके काम में एक स्त्रियोचित कोमलता आने लगी, वह उग्रता, दमन के
विरोध में दमन की चाह अब कहीं स्मृति की परतों में दफ़्न हो चली थी. उसने इस दौरान
स्त्री – सौंदर्य के बहुत सारे चित्र बनाए
, ‘बाथशीबाको ही पांच प्रकार से पेंट किया।
नेपल्स में वे अपने अंतिम दस वर्ष रहीं। 
तो रोम में उसकी कला को प्रश्रय डॉन अंतोनियो रूफो ने दिया। इन वर्षों के
बारे में बहुत कुछ डॉन अंतोनियो रूफो को लिखे गए उसके पत्रों में सुरक्षित है।

वे अपनी
मृत्यु तक नेपल्स में अपनी दो बेटियों के साथ रहती रहीं
, उन्हें भी चित्रकार बनाया। दुर्भाग्य
से उन दोनों के चित्र नष्ट हो गए
, और
कहीं उनके चित्रों का संकेत भी नहीं मिलता। जब वह नेपल्स में रह रहीं थी
, तब एक फ्रांसीसी कलाकार पियरे
द्यूमांस्तियर ली नेवू
, ने
आर्टेमिज़िया का ब्रश हाथ में लिए एक। चित्र बनाया था।
द एक्सेलेंट एंड वाईज़ नोबल वुमन ज्ञफ
रोम
, आर्टेमिज़िया 
जैरोम डेविड ने भी उसकी पोर्ट्रेट बनाई थी। उसकी आकृति से सज्जित मैडल्स से
भी उन दिनों कला की दुनिया की महिला चित्रकारों को नवाज़ा जाता था।

हालांकि
उनकी मृत्यु का वर्ष 1652 लिखा जाता है, लेकिन आर्टेमिजिया की मृत्यु को लेकर कई
असमंजस जरूर हैं. हमारी सदी के पहले दशक में मिले कुछ दस्तावेज़ कहते हैं कि उसने
वर्ष 1654 तक उसने एक प्रोजेक्ट  किया था.
हालाँकि वह पूरी तरह अपने सहायक पेंटर आँफ्रियो पैलुम्बो पर निर्भर हो चली थी.
उसकी मृत्यु का   कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता।  कुछ लोग अंदाज़ लगाते हैं कि जब 1656 में नेपल्स
में प्लेग फैला था तब नेपल्स के कलाकारों की पूरी पीढ़ी साफ हो गई थी… बस
तभी…..

उनकी
मृत्यु पर लिखे गए कुछ व्यंजनापूर्ण स्मृतिलेख जरूर मिलता है
, जो उस समय के कलाजगत के पुरुषों की
मानसिकता को लगभग आज के कलाजगत के पुरुषों के बरक्स यकसां दिखाता है। जिसमें बहुत
चतुराई से आर्टेमिज़िया के कला के प्रखर पक्ष को हटा कर
, 
व्यंजनात्मक
ढंग से उसके यौनप्रेमी होने
, पतिता
होने को दर्शाता है।  इस एपिटाफ़ को बार –
बार छापा गया है
, कि
इसकी कई प्रतियां उपलब्ध हैं। है ना
, विडंबनात्मक कि महिला कलाकारों के लिए समय आज भी नहीं बदला है। इस
एपिटाफ ( स्मृतिलेख) के अनुसार आर्टेमिज़िया की मृत्यु का वर्ष
1652 माना जाता है।

आर्टेमिज़िया
का दुर्भाग्यपूर्ण रेपट्रायल और उसका लीक से हटकर जीवन ज़रूर रहा। वे चित्रकार सफल
रहीं
, अपने अनेकानेकचित्रों में उन्होंने
पुरुष के वर्चस्व के सामने स्त्री की ताकतवर उपस्थिति को चित्रित किया। वह भी
पुरुष वर्चस्व वाले उसी सभ्रांत कलाकारों
, रसूखदारों की दुनिया में। उनके दौर के
पुरुष कलाकार उसकी मृत्यु के बाद तक उसकी सफलता नहीं पचा सके।
1653 में बेहूदा स्मृतिलेख छपे – छपाए गए।
उनमें से एक का मजमूँ  था


एक के बाद एक, एक जैसे चित्र रच कर भी मैंने दुनिया
में कोई स्थान हासिल नहीं किया.
अलबत्ता ब्रश छोड़ कर छेनी उठा ली और अपने पति के सिर पर दो सींग जरूर तराश दिए .

कला
इतिहासकार चार्ल्स मॉफे मानते हैं कि हो सकता है आर्टेमिज़िया ने आत्महत्या की हो।
इसकी वजह वे यह मानते हैं कि
, यही
वजह है उसकी मृत्यु के रिकॉर्ड नहीं मिलते। यह अत्यंत उल्लेखनीय बात है कि
आर्टेमिज़िया की चौंतीस पेंटिग्स आज तक पूरी तरह संरक्षित हैं
, अपने उसी चमकीले स्वरूप में। फ्रेस्को
और सीलींग चित्रों की संख्या तो बहुत है. वह अपने चित्रों में आज भी इटली में
” फीमेल हीरो ऑफ बरोक आर्ट : आर्टेमिज़िया जेंटिलिस्की” के रूप में जानी
जाती है, और लोह्गों के ज़हन में प्रखर रूप से उपस्थित  है।

बाइबिल
की एक कहानी में
, कुछ
हजार वर्ष पहले एक सीरीयाई जनरल हॉलोफर्नेस एक शहर बेथुलिया को नष्ट करता है।  चारों तरफ से शहर को बंद कर देता है। उस शहर के
कई लोग नष्ट हो जाते हैं
, जो
बचते हैं वे भूख से मरने लगते हैं। तब जूडिथ अपनी नौकरानी के साथ एक तरकीब सोचती
है
, वह एक रात शहर से बाहर उसके ख़ेमे में
जाकर उसे रिझाती है
, सूचनाएं
देने का वादा करती है। जब वह नशे में धुत्त सो जाता है। वह धारदार हथियार से उसके
धड़ से सिर अलग कर देती है
, उसका
सर टोकरी में रख शहर में ले आती है। यह कथा पवित्र कथा है। लेकिन यह कथा
, आर्टेमिज़िया के जहन में अटक कर रह
गई।  किशोरावस्था में यौनशोषण
, जनता के बीच मुकदमा, सुनवाई और कौमार्य जांचजैसे अपमानजनक , यातनादायी अनुभव।  उस पर नायककहलाने की जगह  जूडिथऔर सुज़ानेकी तरह कुलटाकहलाया जाना! ठीक जूडिथ की तरह
आर्टेमिज़िया ने अपनी गौरव गाथा चित्रों के माध्यम से लिखी
, और उम्मीद की कि न सही आज मरने के बाद
उन्हें जरूर गौरव मिलेगा। इसीलिए जब आर्टेमिज़िया ने ब्रश और रंग उठाए
, कैनवस या दीवारों और छतों पर परोक्ष –
अपरोक्ष रूप से अपना दर्द रंगा।

आर्टेमिज़िया
की प्रतिभा और अपनी कला में विशेषज्ञता ने उसे अपने पुरुष समकालीनों के बराबर ला
खड़ा किया था और कठोर लैंगिक पक्षपात और पुरुष वर्चस्ववाद के चलते उसे स्वीकृति
देने में न केवल उसका अपना समय आनाकानी करता रहा
, लेकिन वह महान पेंटर बनी अपने समय की, बल्कि कला – इतिहासकारों तक ने उसके
चित्रों की चमकदार उपस्थिति के बावजूद उसे तवज्जोह नहीं दी
, किंतु 1970 के दशक में कुछ फेमिनिस्ट कला
इतिहासकारों ने उसका नाम फिर चमका दिया।

आज
आर्टेमिज़िया और उसकी कला यूरोप में कला के प्रकाश स्तंभ हैं। आर्टेमिज़िया के
संरक्षित चित्र आज भी यूरोप में हर म्यूज़ियम में सजे हैं।

उनके
कुछ बहुत प्रसिद्ध चित्रों की सूची और संग्रहालयों के नाम जहाँ ये संरक्षित हैं.


सुज़ाने एंड द एल्डर्स –  स्कॉनबॉन
कलेक्शन पॉमर्सफेल्डन, बावेरिया स्टेट जर्मनी

जूडिथ बीहेडिंग हॉलोफर्नेस – केपोडीमोंते म्यूज़ियम नेपल्स 

मैडोना एंड चाइल्ड –  स्पाडा
गैलेरी, रोम

वुमन प्लेयिंग द ल्यूट –उफीज़ी गैलेरी
फ्लोरेंस

जूडिथ एंड हर मेडसर्वेंट  – डिट्रायट इंस्टीट्यूट ऑफ़ आर्ट मिशीगन

जूडिथ स्लायिंग हॉलोफर्नेस –उफीज़ी गैलेरी, फ्लोरेंस

जूडिथ विद द मेडसर्वेंट 2 – पलाजो पित्ती
फ्लोरेंस

एलेगरी ऑफ इंक्लिनेशन – कासल ब्यूनारत्ती , फ़्लोरेंस

सेल्फ पोर्ट्रेट विद ल्यूट – लंदन

मैडोना एंड चाईल्ड विद रोज़री  रॉयल
सीट ऑफ़ सैन लॉरेंज़ो स्पेन

सेंट कैथरीन – कैथेड्रल पॉज़ॉली रोम

कोरिस्का – पर्सनल कलेक्शन नेपल्स इटली

मैगदलान – वर्ड्सवर्थ म्यूज़ियम

सैंट सैसिला – कैथेड्रल , पॉज़ॉली  रोम

बर्थ ऑफ़ सेंट जॉन बैप्टिस्ट – प्राडो म्यूज़ियम,
मैड्रिड स्पेन

एस्थर एंड ऎस्यूरस – मैट्रॉपॉलिटन म्यूज़ियम
मैनहट्टन न्यूयॉर्क

स्लीपिंग वीनस – वर्जिनीया म्यूज़ियम ऑफ आर्ट

पोर्ट्रेट ऑफ गॉनफ्लोनियर – बोलोग्ना, इटली

ल्यूक्रेशिया – उफीज़ी गैलेरी फ्लोरेंस

सैमसन एंड डैलीला – फ्रांस

डेविड एंड बाथशीबा – कोलम्बिया ऑहायो

बाथशीबा टुडे – लिप्ज़िग फ्रेंकफर्ट

 

(चित्र साभार – विकिपीडिया)